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तीर्थंकर चालीसा

लघु-चालीसा -; पंच बालयति

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 

पंच बालयति
लघु चालीसा
‘दोहा’
कीर्तन सिवा न दूसरा,
कलि कल्याणक द्वार ।
आ पल पल सु-मरण करें,
ना ‘कि तीज त्योहार ।।

दया से भींगे तेरे नैन ।
और हित रहते तुम बेचैन ।।
किसी की देख न सकते पीर ।
दृगों से बहने लगता नीर ।।१।।

लगाई रानी सीता टेर ।
लगाई फिर तुमने कब देर ।।
शील जय शीलवती बड़भाग ।
बदल चाली पानी में आग ।।२।।

दया से भींगे तेरे नैन ।
और हित रहते तुम बेचैन ।।
किसी की देख न सकते पीर ।
दृगों से बहने लगता नीर ।।३।।

लगाई देवी सोमा टेर ।
लगाई फिर तुमने कब देर ।।
शील जय शीलवती बड़भाग ।
फूल माला में बदले नाग ।।४।।

दया से भींगे तेरे नैन ।
और हित रहते तुम बेचैन ।।
किसी की देख न सकते पीर ।
दृगों से बहने लगता नीर ।।५।।

लगाई देवी नीली टेर ।
लगाई फिर तुमने कब देर ।।
शील जय शीलवती बड़भाग ।
खुला दरवाजा सति बेदाग ।।६।।

दया से भींगे तेरे नैन ।
और हित रहते तुम बेचैन ।।
किसी की देख न सकते पीर ।
दृगों से बहने लगता नीर ।।७।।

लगाई रानी द्रोपत टेर ।
लगाई फिर तुमने कब देर ।।
शील जय शीलवती बड़भाग ।
चीर जा करे क्षितिज अनुराग ।।८।।

दया से भींगे तेरे नैन ।
और हित रहते तुम बेचैन ।।
किसी की देख न सकते पीर ।
दृगों से बहने लगता नीर ।।९।।

हाय ! मेरा भी फूटा भाग ।
करो कुुछ मने दिवाली फाग ।।
निराकुल कर लो अपने भाँत ।
यही फरियाद जोड़कर हाथ ।।१०।।
=दोहा=
सिवा एक भगवत कृपा,
लो खरीद, दे मोल ।
अश्रु सिवा भगवान् को,
सका न कोई तोल ।।

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