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तीर्थक्षेत्र पूजन

पूजन- दो चक्री दश काम कुमार

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 

दो चक्री दश काम कुमार
पूजा

करुणा दया क्षमा अवतार ।
दो चक्री दश काम कुमार ।।
आज एक भव जलधि जहाज ।
साढ़े तीन कोटि मुनिराज ।।
शिवगामी अन्तर्-यामी ।
बुला रहा आओ स्वामी ।।
हृदय वेदि पधराता हूॅं ।
अशुअन चरण धुलाता हूँ ।।
जय जय कार… जय जय कार ।
दो चक्री दश काम कुमार ।।स्थापना।।

प्यास बुझा न पाया जल ।
तृषा बुझाने लाया जल ।।
इसे और मुझको अपना ।
किरपाकर कर लो अपना ।।

रुचा आज तक वन-क्रन्दन ।
बनने सहज लिये चन्दन ।।
इसे और मुझको अपना ।
किरपाकर कर लो अपना ॥

पा पाने जिन गुण सम्पत ।
दाने लिये अछत अक्षत ।।
इसे और मुझको अपना ।
किरपाकर कर लो अपना ॥

बाणन पुष्प सताया हूँ ।
पुष्प-फुल्ल चुन लाया हूँ ।।
इसे और मुझको अपना ।
किरपाकर कर लो अपना ॥

रोग क्षुधा होवे अवसाँ ।
घृत निर्मित लाया पकवाँ ।।
इसे और मुझको अपना ।
किरपाकर कर लो अपना ॥

तम ‘कि मोह बगलें झाँके ।
दीप चढ़ाऊँ घृत लाके ।।
इसे और मुझको अपना ।
किरपाकर कर लो अपना ॥

कर्म समेट ‘कि ले माया ।
धूप नूप घट ले आया ।।
इसे और मुझको अपना ।
किरपाकर कर लो अपना ॥

मोक्ष महा इक भाया फल ।
मधुर रसीले लाया फल ।।
इसे और मुझको अपना ।
किरपाकर कर लो अपना ॥

पद अनर्घ इक अभिलाषा ।
भेंट अर्घ रख विश्वासा ।।
इसे और मुझको अपना ।
किरपाकर कर लो अपना ॥

दोहा
सिवा आपके कौन है,
मेरा जगत् हुजूर ।
पाँव पास रख लिजिये,
कर विनन्ति मंजूर ।।

जयमाला

साथ में विश्वास ।
लिये आया आश ।।
रख लो मुझे, अपने चरणों के आस-पास ।
न और अरदास ।।

क्यूँ ‘कि तू ही बस, मेरा इक अपना है ।
तेरे बिना मेरा, अधूरा हरिक सपना है ।।
रख लो मुझे, अपने चरणों के आस-पास ।
न और अरदास ।।

साथ में विश्वास ।
लिये आया आश ।।
रख लो मुझे, अपने चरणों के आस-पास ।
न और अरदास ।।

चूँकि अकेले इक तुमसे, लगन मेरी लागी ।
पड़ते ही तेरी इक नजर, किस्मत मेरी जागी ।।
रख लो मुझे, अपने चरणों के आस-पास ।
न और अरदास ।।

साथ में विश्वास ।
लिये आया आश ।।
रख लो मुझे, अपने चरणों के आस-पास ।
न और अरदास ।।

क्यूँकि इक तेरे सिवा,
नहीं कोई और मेरा ।
मरते दम तक मुझको,
इक अकेला आसरा तेरा ।।
रख लो मुझे, अपने चरणों के आस-पास ।
न और अरदास ।।

साथ में विश्वास ।
लिये आया आश ।।
रख लो मुझे, अपने चरणों के आस-पास ।
न और अरदास ।।


दोहा
रग रग है निवासी दया,
छुपी न जग से बात ।
भजत भजत भवि भक्त के,
लगता सब कुछ हाथ ।।

आरती
आज एक भव जलधि जहाज ।
साढ़े तीन कोटि मुनिराज ।।
जय-जय-कार, जय-जय-कार ।
दो चक्री दश काम कुमार ।।

घृत दीपक ले अपने हाथ ।
झाँझर, ढ़ोल, मॅंजीरे साथ ।।
उतारूँ आरती तुम्हार ।
जय-जय-कार, जय-जय-कार ।।
आज एक भव जलधि जहाज ।
साढ़े तीन कोटि मुनिराज ।।
जय-जय-कार, जय-जय-कार ।
दो चक्री दश काम कुमार ।।

राज पाट मन लुभा न पाया ।
भेष दिगम्बर लुञ्चन भाया ।।
परिषह शीत उष्ण जल-धार ।
जय-जय-कार, जय-जय-कार ।।
आज एक भव जलधि जहाज ।
साढ़े तीन कोटि मुनिराज ।।
जय-जय-कार, जय-जय-कार ।
दो चक्री दश काम कुमार ।।

कर्म घातिया ध्यान अगन में ।
विहँसाये आनन-फानन में ।।
गंध-कुटी धुनि तारण हार ।
जय-जय-कार, जय-जय-कार ।।
आज एक भव जलधि जहाज ।
साढ़े तीन कोटि मुनिराज ।।
जय-जय-कार, जय-जय-कार ।
दो चक्री दश काम कुमार ।।

समय एक शिव-नगर पधारे ।
फूटे सौख्य-अबाध फबारे ।।
आखिर गया भ्रमण-भव-हार ।
जय-जय-कार, जय-जय-कार ।।
आज एक भव जलधि जहाज ।
साढ़े तीन कोटि मुनिराज ।।
जय-जय-कार, जय-जय-कार ।
दो चक्री दश काम कुमार ।।

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