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जवाब लाजवाब आचार्य श्री जी

जवाब लाजवाब -443

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 

सवाल

आचार्य भगवन् !
मानते हैं
किन्हीं सन्त को ‘गुजरात केशरी’ इसलिये कहते हैं
चूँकि उन्होंने
केशरी यानि ‘कि सिंह के जैसा
जैन अहिंसा धर्म का बिगुल बजाया,
शंखनाद किया,
निडर हो करके सारे गुजरात राज्य में
पंचरंगा लहराया

किन्हीं सन्त को सन्त शिरोमणी कहते हैं,
जिन्होंने भगवन्त कुन्द-कुन्द की
निरतिचार चारित्र धारा को
घोर कलजुग में अथक, अरुक बहाया है
और किसे नहीं पता
‘बहता पानी निर्मला’

सो यह सन्त शिरोमणी कोई और नहीं
मेरे भगवन् सिर्फ और सिर्फ आप हैं
भगवन् !
लेकिन आजकल एक उपाधि और
सुर्ख़िंयों में छाई हुई है
मुनि-पुङ्गव
यह किस चिड़िया का नाम भगवन् !
सुनते हैं,
आप अकेले सार्थक नाम है इस दुनिया में
विद्या के सागर
कृपया बतला दीजिये ना
क्या कहते हैं शब्द मुनि-पुङ्गव के अखर-अखर
नमोस्तु भगवन् !
नमोस्तु भगवन् !
नमोस्तु भगवन् !

जवाब…
लाजवाब

सुनिये,
क्या मैं इतने प्रशंसा के पुल बाँधने के बाद
उत्तर देता हूँ
कितना कुछ का कुछ कहते गये आप
बगैर ही सोचे समझे
सन्त शिरोमणी कोई है
तो सिर्फ भगवन्त कुन्द-कुन्द
मैं तो कुन्द बुद्ध हूँ
मन्द बुद्ध हूँ
जो कुछ है
सब आचार्य प्रवर ज्ञान सागर जी का
वरद-हस्त है

अस्तु, चलिये पते की बात करते हैं
शब्द मुनि-पुङ्गव पुराण राज जम्बूस्वामी चरित्र
जिसे कविराज वीर जी ने
भूमि पर अवतरित किया है
उसमें एक बार नहीं
नेक बार उल्लेखित किया है

माँ सरस्वती मुझसे जो अर्थ कहलवा रही हैं
मैं वह आपके सामने रखता हूँ
‘मुनि’ मतलब मन
‘पु’ मतलब पुरु-देव
‘गव’ मतलब गुरुदेव की आज्ञा पालन में
निरत है जिनका वह
आज्ञा शब्द भी बड़ा ही बेजोड़ है
‘अ’ से लेकर के ‘ज्ञ’ तक के सारे स्वर
समाहित है इस दिव्य शब्द में,
जो आज्ञा देते ही
एक एक करके अक्षर सब चल निकलते हैं
और पुरु-पुरखों की
गुरु बुजुर्गों की आज्ञा पालते ही अमिट
धरोहर बन चलते हैं

सो पुरुदेव,
जिन्हें अपने गुरुदेव
अपनी जान से भी ज्यादा प्यारे हैं
मुनि पुंगव उपाधि के साथ
गूँज रहे न किस दिश्-विदिश् उनके जयकारे हैं

आचार्य प्रवर ज्ञान सागर जी एक अर्थ
और दे रहे हैं मेरे जेहन में
उसे भी सुनियेगा
‘पुं’ यानि ‘कि पुण्य
‘गव’ मतलब गावने योग्य है जिस‌का
एक पलड़े पर सारी दुनिया पुण्य
और दूसरे पल में पर इस महामुनि का
सातिशय पुण्य रक्खा जाये
तो भी बराबरी नहीं कर सकता है
सच
इस धरा पर
वसुन्धरा पर यह सन्त
दूसरा ही कोई आसमानी फरिश्ता है

चलते-चलते एक अर्थ और देता हूँ
पुन यानि ‘कि पुनि…पुनः
‘ग’ मतलब चार गति
और चौरासी लाख योनि पञ्च परावर्तन रूप
वर्तन-प्रवर्तन जिसका
‘व’ मतलब वर्जित हो चला है
निकट ही नहीं,
जो आसन्न भव्य है
विरला है
आचरण जिसका चरण चिन्ह बन
मुमुक्षुओं को दर्पन दिखायेगा
दर्प…न होगा जिसके अन्दर
कम से कम शब्दों में कहूँ
तो जो होगा सत्य, शिव और सुन्दर
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः

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