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जवाब लाजवाब आचार्य श्री जी

जवाब लाजवाब -432

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 

सवाल
आचार्य भगवन् !
मंजिल मिलती ही नहीं,
मन कहता है
नाम के मील के पत्थर जैसे है यह,
चलो टिक चलें इनसे,
और कुछ काम के मील के पत्थर बना लें,
कम से कम रास्ते की थकान ही मिटा लें भगवन्
मैं अपने ठिकाने लगूँगा कभी,
या फिर
स्वप्न ही देखता रहूँगा कामयाबी के मैं
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,

जवाब…
लाजवाब

सुनिये,
दूसरी कक्षा में पढ़ी
एक क… हानि का सार कहता हूँ

‘के गिरगिट जैसा सिर उठाना आता है
खरगोश को तो बस
हवाई महल की ताशपत्ती जमाना आता है कछुआ कछु और है
जिन्होंने कखहरा छुआ
उनमें सिर-मौर है
तभी तो नामकरण हुआ
क…छुआ

देखिए
बाधिन सा न सही
भागिये
दौड़िये
नागिन सा न सही
पर रेंगिये जरूर
केंचुए सा न सहीं
सही जुएँ सा ही
पर न थम जाना राही

सिख’लाती
चीज हर
चलाकर
थी दादी माँ बतलाती
‘के
बैटरी
हँस
न कह रही हो बस
बेट ‘री
जहाँ दोई
सपने में भी कोई
लेट लतीफ न कह पाया
तभी
एक सुर मुख सभी
निकल कर आया
कितने बजे हैं
कितने बजे हैं
वाह ‘री
किस्मत घड़ी
चल चल ‘रे तू भी चल
देख वो सामने तेरे
तेरी मंजिल
बाहें फैलाये खड़ी
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः

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