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जवाब लाजवाब आचार्य श्री जी

जवाब लाजवाब -310

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 

सवाल
आचार्य भगवन् !
नाव से पानी उलीचते रहना,
यदि बाद में न खींजते रहना
तो पंखो से धूल मिट्टी नीचे खींचते रहना
ये पंक्तिंयाँ क्या कहना चाहतीं हैं
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,

जवाब…
लाजवाब
ऐसी वैसी नहीं माखी
माँ की
गुणों के बीच अवगुण एकाध
गोरे चेहरे पर तिल के भाँत
ज्यादा कुछ क्या गुड़ से लिपटे पंख ‘पाव’
पंक पाँव क्या आमूल-चूल डूबे हेम
दुनिया ने कहा हे…मा

वह तो कह रहा हैं माँ मुझे विश्वास है पून
अंक मेरी माँ, मैं भले शून
सो… न सिर धुनती,
न हाथ मलती
चश्मा उतार कर देखा सहजो-निराकुल प्रकृति
चूँकि उसे न कबूल,
अपने पंखों के ऊपर थोड़ी सी भी धूल
इसलिये जैसे बने वैसे,
सर-हाथ से धूूल, धूल में मिला रही है
यह माजरा मद्देनजर रखते हुए
भले कर्मों का भारी भरकम शरीर हमारे पास है
पल-पल परिणति अपनी निंदा, गर्हा, आलोचना से संक्लेशों को तिलांजली देते हुये,
कषाय की मंदता रूप विशुद्धि अंजली में लेते हुये
माखी को नहीं भुलाना चाहिये
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः

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