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जवाब लाजवाब आचार्य श्री जी

जवाब लाजवाब -284

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 

सवाल
आचार्य भगवन् !
खिलता ‘कि मुरझाने लगता फूल,
करने कबूल,
चाहिये जो भीतरी, आंख तीसरी
वो कैसे मिलती है
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,

जवाब…
लाजवाब
देखिये
शब्द आगमन ही,
गमन को बुला कर लाता है
यह कह करके ‘के
आ…गमन

बालू घड़ी, पलटी खिलाई,
‘कि लेने लगी विदाई

करते ही हर-हर गंगे,
होने लगे कपड़े, फिरके गंदे

शब्द नवल,
अक्षर पलट अल्प विराम पा कह चला,
न…बल जितना था पहले समय मुझमें

और आप कह रहे वो,
भीतरी आंख तीसरी, कैसे मिलती है

तो वह मिलती नहीं है,
मिलती तो दो हैं,
चार खरीदनी पड़तीं हैं
तीसरी खोजनी पड़ती है
यदि बोलतें आप ‘कि कहाँ ?
तो भीतर ही,
कही बाहर नहीं, उसकी गंध
अपने भीतर ही वो सोने-सुगंध
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः

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