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जवाब लाजवाब आचार्य श्री जी

जवाब लाजवाब -255

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 

सवाल
आचार्य भगवन् !
वैरी मत बनाना,
ऐसा आप कहते रहते हैं
क्या राज छुपा है, बतलाईये तो जर्रा
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,

जवाब…
लाजवाब
देखो ना,
बेरी झड़ाते है,
वरना काँटे चुभ जाते हैं
सो वैरी मत बनाना,
किसी को मित्र बनाने में देरी मत लगाना

जिन्दगी एक ताशमहल
जुड़ने वाली
हर पत्ती,
पतने वाली
अर्श से फर्श पर लाने की हुनर रखती है
बात सौ फीसदी सच्ची है

उसे क्षमा कर दो,
अगले जनम के लिये अपने आतम के लिये
कुछ तो कमा कर दो

दिल पर जीत का वाकया
है जाता लिखा आँसू से न ‘कि खूँ से

हारने का भी अपना इस अलग मजा है
आ…
देखते जर्रा उसकी भी क्या रजा है

नफा…रत होने आ…
लगें नफरत खोने

दो-दो हाथ करने के लिये,
अपना गिरेवान झाँकिए
खूब खामिंयाँ
एक एक को आड़े हाथ लीजिए
बखूब दुनिया दो कदम साथ देकर तो देखिए

बदला लिया ‘कि टोटा
मोटा फायदा तो था तब,
जब उसे बदल लिया होता

‘कुछ नव-कर’ चलते जो,
वो होते हैं सिर्फ नौकर ही ऐसा कहाँ
दूसरा जहां !
रखता बाँट बँटखरे खरे,
इस जहाँ के
‘के बाँट बँटखरों से मत तुलो, न तोलो

फिर होता जीतना
पहले सामने वाले को पराया मानना पड़ता है
वह तो हारता,
जो सामने वाले को अपना मानकर लड़ता है
नेक बन चले फरिश्ते
चलकर के एक वसुधैव-कुटुम्बकम् रस्ते

किसी बात पर होना कहा सुनी
यानी
स्नेह में, समर्पण में गुंजाइश है
दिश् विदिश् गूँजा बस है
पानी जो और मीठा तो खो…दो
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः

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