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जवाब लाजवाब आचार्य श्री जी

जवाब लाजवाब -251

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 

सवाल
आचार्य भगवन् !
पृथ्वी तो क्षमा सार्थक नाम है,
माँ भी कहते हैं हम इसे,
फिर ठोकरों को पनाह क्यों दिये रहती है यह ?
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,

जवाब…
लाजवाब
वैसे रास्ता
उमर ढ़ले, जब कम दिखने लगे,
तब आप आप ही दिखने लगता

ठोकर नाश्ता है,
जिसे खाकर ही,
शिखर तक पहुँचा जा सकता है

ठोकर की ऊँचाई ज्यादा से ज्यादा कितनी ?
यदि कहो तो, बस चार अंगुल,
इससे ऊपर उठे,
‘के ठोकर अब न लगनी

जो चला करते देख देख कर
चौ-कर प्रमाण धरती
उन्हें ठोकर न लगा करती

ठोकर ठोक कर समझाये
और आ समझ में जाये,
तब भी पीठ अपनी अपने ही हाथ से,
ठोक लेना चाहिये

भईये !
ठोकर खाकर तो डकार लेनी चहिये
इतकी कितनी भूख
संंभल,
कर आगे अब न चूक

ठोकर यानि ‘कि चीख
औरों की चीख से ले सीख
और यदि सिखाना ही औरों को,
तो फिर ठीक

चश्में का काँच बिखर जाता है
चूर चूर होकर
लगने के बाद ठोकर
बिन चश्मे के दिख जाती है
पर तब क्या ? खेत जब चिड़िया चुग जाती है

ठोकर खानी चाहिये,
आँख तो भर ही आती है,
अपनी नादानी पर, बाद में
और यदि कारण कोई अपना हो तो
दिल-हृदय-मन भी भर आता है
बस भर आने की जगह
मन भर जाये,
तो रास्ता मिल जाये
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः

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