loader image
Close
  • Home
  • About
  • Contact
  • Home
  • About
  • Contact
Facebook Instagram

जवाब लाजवाब आचार्य श्री जी

जवाब लाजवाब -204

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 

सवाल
आचार्य भगवन् !
आज नेक दिल इन्सां मिलते हीं नहीं,
पाप दिलों में तिलों के जैसा अतराने लगा है
आजकल,
सच भगवान् ही मालिक है,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,

जवाब…
लाजवाब
सुनो,
नो… नो… नो…
सुनो
खुद-ब-खुद, कहता सा कुछ शब्द
नेक-दिल
अनेक दिल
छोड़ के सिर्फ हमारा
अपना एक दिल
हमारे अपने अलावा सभी भले,
‘रे छोड़ शिकवे गिले

और सुन,
कपड़े महंगे-महंगे गहने
सेंडिल
रंग रंग की
बेंगिल
दे…बता
फिर आखिर क्यूँ
एक इसी घिसे-पिटे चश्मे से
कुछ का कुछ देखता रहता है
रंग रंग के चश्मे भी रख ले
सामने वाला जिस रंग का चश्मा लगाये
उसी रंग के चश्मे से निरख ले
क्यूँ कहता फिरता है
“कल तो मिलोगे, देख लेंगे तुम्हें”

क्या सुना भी है,
शब्द भल-मानस,
संबोधन अपना ही है
भव-मानस मानस-तट माफिक
मछलिंयाँ उतने ही मोती-माणिक
बगुले बनना या हंस,
मर्जी आपकी
राह पाप की, फिर पकड़ना
पहले मन को बतला देना,
‘कि मोती भी कम ना
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः

Sharing is caring!

  • Facebook
  • Twitter
  • LinkedIn
  • Email
  • Print

Leave A Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

*

*


© Copyright 2021 . Design & Deployment by : Coder Point

© Copyright 2021 . Design & Deployment by : Coder Point