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जवाब लाजवाब आचार्य श्री जी

जवाब लाजवाब -189

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 

सवाल
आचार्य भगवन् !
खुरापाती है मेरा मन
भगवन् ज़र्रा सा हटक दो ना इसे
सुनते हैं,
आपको वचन-सिद्धी है
सभी आपकी बात मान लेते हैं
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,

जवाब…
लाजवाब
मन चतुरा है बड़ा,
दूसरों को किताब से
सही देखना चाहता है
और खुद को अपने हिसाब-किताब से
सही रखना चाहता है
सच दुनिया तो दूर रही,
दूनिया मन का भी अटपटा है जरा
मन एकम् ही मन होता है
सवा सेर कहाँ लगता,
चालीस सेर होता है
हहा ! इतना बड़ा चढ़ा भाव
किसी और का कहाँ
सचमुच
टेड़ा-मेड़ा लक्कड़ है
मन तेरा मेरा भुलक्लड़ है
पीछे पड़ कर
कान-खींच, पकड़ कर
समझाओ बार-बार
‘के बरखुरदार
मिटता पहली बार
फटता अगली बार…
पेज,
कुछ-कुछ ऐसी ही
थारी-मारी इमेज

सो सुनों
अच्छे कामों के लिये,
कदम बढ़ाते समय,
मना करने वाला मन यदि,
खींचकर नीचे ले जाये
तो चलाकर ऊपर उठिये
और बना लीजिये
विक्ट्री का ‘V’
और फिर ‘V’ बनाते बनाते सही का निशान
भाई, कुछ तो छोड़िये
अपने मानव होने की पहचान
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः

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