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जवाब लाजवाब आचार्य श्री जी

जवाब लाजवाब -176

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 

सवाल
आचार्य भगवन् !
डबल, तिबल, चुबल सभी,
बल को पीछे लगाये है
फिर भी आपने जाने क्यों ?
सिंगल रहना स्वीकार किया ?
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,

जवाब…
लाजवाब
सुनिये,
दूनी से,
दूनिया हो शुरु,
और दुनिया हो शुरु, दुई से
कहे एकम्
दूज चॉंद, दूज
एक हम
सो भाई…
रहने पर ‘Single’
‘Sin’ गल जाते हैं
दिन बदल जाते हैं
ऐसी वैसी कब मुशीबत
मुँ… सीबत
सुना ही होगा आपने
दादी नानी के मुख से
‘जबरा मारे, और रोने न दे’
सच मुँह ‘रे हम
मुख दूसरा
वैसे वो कोई अजनबी नहीं
सब कुछ, अपना ही किया धरा पूर्व करम
‘मानौ’ न मानो मुहरे हम
आप पूछ ही रहे हैं,
तो एक माँ की व्यथा बताय देते हैं ।

पिंकी, रिंकी, चिंकी
आईं तीन बहुएँ
जिनके बारे में, क्या कहूँ मैं
दिल नेक
एक से बढ़ के एक
बाकी बचा एक छोरा,
सार्थक नाम
जिसने सनेह छोड़ा धन-धाम
एक दिन बोली माई
तू भी रचा ले शादी
भले सादी भाई
बोला छोरा
यदि चौथी ‘मंकी’ आई
पानी आँखों में लेकर के बोली
मोरी भोली माई
‘रे मेरे बच्चे नादाँ
ये पिंकी कम हैं
हैं पिनकी ज्यादा
भले तू ‘मंकी’ ले आ
‘रे एक तो मेरे मन की ले आ
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः

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