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जवाब लाजवाब आचार्य श्री जी

जवाब लाजवाब -137

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 

सवाल
आचार्य भगवन् !
क्या लिखते हैं आप,
सीधा जाकर हृदय में उतर जाता है
भगवन् !
गजब की मेधा,
गजब की प्रज्ञा पाई है आपने
अद्‌भुत क्षयोपशम है आपका
सच सब पूर्वापार्जित पुण्य है
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,

जवाब…
लाजवाब
भाई
गजब ही नहीं, अजब भी बोलिये
मेधा
‘मैं’ धारण किये फिरता हूँ
‘मय’ यानि ‘कि शराब
छोड़िये नाक,
आ गया तलक सर…आब मतलब पानी
फिर भी सुध नहीं ले रहा हूँ
किये चला जा रहा हूँ मनमानी
केवल ज्ञान के आगे मेरी धिया
केवल भान के आगे ये ‘री दिया
प्रज्ञा
पर ज्ञां
दूसरों का ज्ञान, रख अपने काँधे पर फिरता हूँ
गिरगिट सा सर उठा-उठाकर चलता हूँ
अपनी निधि के मामले में पोचा हूँ
जाने क्यूँ विधि कहलवा रही है
विद्वान पहुँचा हूँ
लगता है ‘एन्काउण्टर’ करा रही है
‘वाह क्या’
वाकया रूद्र न सिर्फ, मुँह जुबानी याद मुझे
करना इस दफा, माया का पर्दाफाश मुझे
एक न उठा पाया सो…ना
मैं सौ’गंध उठा के आया हूँ,
फिरके अपनी माँ के लिए रुला के आया हूँ
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः

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