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आचार्य श्री पूजन

गुरु-पाद पूजन – 991

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 
  • परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित

पूजन क्रंमाक 991

करुणा के निधान तुम
जैन धर्म की शान तुम
अय ! आँख नम
हम भक्तों के भगवान् तुम ।।स्थापना।।

आया मैं नैन सजल
लाया मैं गंगा जल
करुणा के निधान तुम
जैन धर्म की शान तुम
अय ! आँख नम
हम भक्तों के भगवान् तुम ।।जलं।।

आया मैं सदय हृदय
लाया मैं गंध मलय
करुणा के निधान तुम
जैन धर्म की शान तुम
अय ! आँख नम
हम भक्तों के भगवान् तुम ।।चन्दनं।।

आया मैं ले श्रद्धा
लाया मैं शालिक धाँ
करुणा के निधान तुम
जैन धर्म की शान तुम
अय ! आँख नम
हम भक्तों के भगवान् तुम ।।अक्षतं।।

आया मैं तर रग रग
लाया मैं सुमन सुरग
करुणा के निधान तुम
जैन धर्म की शान तुम
अय ! आँख नम
हम भक्तों के भगवान् तुम ।।पुष्पं।।

आया मैं गद-गद मन
लाया मैं घृत व्यंजन
करुणा के निधान तुम
जैन धर्म की शान तुम
अय ! आँख नम
हम भक्तों के भगवान् तुम ।।नैवेद्यं।।

लाया मैं ज्योत जगा
आया में लगन लगा
करुणा के निधान तुम
जैन धर्म की शान तुम
अय ! आँख नम
हम भक्तों के भगवान् तुम ।।दीपं।।

आया मैं ले पुलकन
लाया मैं सुगंध अन
करुणा के निधान तुम
जैन धर्म की शान तुम
अय ! आँख नम
हम भक्तों के भगवान् तुम ।।धूपं।।

आया मैं सजल नयन
लाया मैं फल नन्दन
करुणा के निधान तुम
जैन धर्म की शान तुम
अय ! आँख नम
हम भक्तों के भगवान् तुम ।।फलं।।

आया मैं भींगे दृग्
लाया है अलग अरघ
करुणा के निधान तुम
जैन धर्म की शान तुम
अय ! आँख नम
हम भक्तों के भगवान् तुम ।।अर्घ्यं।।

कीर्तन
जय हो, जयतु जय हो
श्री मन्त नन्द की
शिख ज्ञान सिन्ध की
जय हो, जयतु जय हो

जयमाला
गुरुदेव के श्रीमुख से, हैं आये सुनते
दो नहीं, मिल के एक, एक, ग्यारा बनते

कभी न आपस में लड़ना ।
हाथ मिला आगे बढ़ना ।।
लक्ष्य नहीं छोटा-मोटा ।
खड़ी चढ़ाई है चढ़ना ।।

दो नहीं, मिल के एक, एक, ग्यारा बनते
गुरुदेव के श्रीमुख से, हैं आये सुनते
दो नहीं, मिल के एक, एक, ग्यारा बनते

सुन दो बातें मत खीजो ।
टाँग किसी की मत खींचो ।।
जान एक हम जुदा जिसम
काँधे उठा गगन भेजो ।।

दो नहीं, मिल के एक, एक, ग्यारा बनते
गुरुदेव के श्रीमुख से, हैं आये सुनते
दो नहीं, मिल के एक, एक, ग्यारा बनते

कोई रंक नहीं राणा ।
इक ताना दूजा बाना ।।
पत्थर नींव बने आ हम ।
ताश-महल तो गिर जाना ।।

दो नहीं, मिल के एक, एक, ग्यारा बनते
गुरुदेव के श्रीमुख से, हैं आये सुनते
दो नहीं, मिल के एक, एक, ग्यारा बनते
।। जयमाला पूर्णार्घं ।।

हाईकू
बसे,
‘जी’
जन-जन के,
फेरूँ नाम तिन मनके

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