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आचार्य श्री पूजन

गुरु-पाद पूजन – 972

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 
  • परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित

पूजन क्रंमाक 972

बरसती ही रहती है मुझ पर
तेरी किरपा
यूँ ही बरसती रहे उम्र भर
जन्म हर
तेरी किरपा
अय ! मेरे गुरु सा ।।स्थापना।।

मैं लाया हूँ जल गंगा
जगा के मन में, सच्ची श्रद्धा
जयतु जय जय, जय विद्या
तेरी किरपा
यूँ ही बरसती रहे उम्र भर
जन्म हर
तेरी किरपा
अय ! मेरे गुरु सा ।।जलं।।

मैं लाया हूँ घट गंधा
जगा के मन में, सच्ची श्रद्धा
जयतु जय जय, जय विद्या
तेरी किरपा
यूँ ही बरसती रहे उम्र भर
जन्म हर
तेरी किरपा
अय ! मेरे गुरु सा ।।चन्दनं।।

मैं लाया हूँ अक्षत धाँ
जगा के मन में, सच्ची श्रद्धा
जयतु जय जय, जय विद्या
तेरी किरपा
यूँ ही बरसती रहे उम्र भर
जन्म हर
तेरी किरपा
अय ! मेरे गुरु सा ।।अक्षतं।।

मैं लाया हूँ निशि-गंधा
जगा के मन में, सच्ची श्रद्धा
जयतु जय जय, जय विद्या
तेरी किरपा
यूँ ही बरसती रहे उम्र भर
जन्म हर
तेरी किरपा
अय ! मेरे गुरु सा ।।पुष्पं।।

मैं लाया हूँ घृत पकवाँ
जगा के मन में, सच्ची श्रद्धा
जयतु जय जय, जय विद्या
तेरी किरपा
यूँ ही बरसती रहे उम्र भर
जन्म हर
तेरी किरपा
अय ! मेरे गुरु सा ।।नैवेद्यं।।

मैं लाया हूँ घृत दीवा
जगा के मन में, सच्ची श्रद्धा
जयतु जय जय, जय विद्या
तेरी किरपा
यूँ ही बरसती रहे उम्र भर
जन्म हर
तेरी किरपा
अय ! मेरे गुरु सा ।।दीपं।।

मैं लाया हूँ दश-गंधा
जगा के मन में, सच्ची श्रद्धा
जयतु जय जय, जय विद्या
तेरी किरपा
यूँ ही बरसती रहे उम्र भर
जन्म हर
तेरी किरपा
अय ! मेरे गुरु सा ।।धूपं।।

मैं लाया हूँ फल नन्दा
जगा के मन में, सच्ची श्रद्धा
जयतु जय जय, जय विद्या
तेरी किरपा
यूँ ही बरसती रहे उम्र भर
जन्म हर
तेरी किरपा
अय ! मेरे गुरु सा ।।फलं।।

मैं लाया हूँ जल गंधा
जगा के मन में, सच्ची श्रद्धा
जयतु जय जय, जय विद्या
तेरी किरपा
यूँ ही बरसती रहे उम्र भर
जन्म हर
तेरी किरपा
अय ! मेरे गुरु सा ।।अर्घ्यं।।

कीर्तन
गुरुदेव जय
गुरुदेव जय
जय जय जयतु जय, गुरुदेव जय

जयमाला
यही प्रार्थना मेरे भगवन्,
इन हाथों को जोड़ के ।
भगवन् हमें बना दो ऐसा,
काम आ सकूँ और के ।।

कुछ हो, भले बहुत कुछ हो पर,
सब-कुछ ना होवे पैसा ।
मानवता ही भूल गया जो
बोलो वो मानव कैसा ।।

जोड़ा जुड़ा, यही रह जाना
जाना सब कुछ छोड़ के ।
भगवन् हमें बना दो ऐसा,
काम आ सकूँ और के ।

यही प्रार्थना मेरे भगवन्,
इन हाथों को जोड़ के ।
भगवन् हमें बना दो ऐसा,
काम आ सकूँ और के ।।

बोझ हमारी बने जिन्दगी
ऐसा दिन ना देखें हम ।
मात पिता परिवार सभी को
चलें साथ में लेके हम ।।

बनें साहसी, ना ‘कि आलसी,
पालें मंजिल दौड़ के ।
भगवन् हमें बना दो ऐसा,
काम आ सकूँ और के ।।

यही प्रार्थना मेरे भगवन्,
इन हाथों को जोड़ के ।
भगवन् हमें बना दो ऐसा,
काम आ सकूँ और के ।।

हाथ-पैर क्या नहीं हमारे,
क्यों विदेश का मुँह ताँकें ।
चीजें अपने हाथ बना के
क्यूँ न लाज भारत राखें ।।

ठानें, श्वास-चैन लेगें, रुख-
हवा पश्चिमी मोड़ के ।
भगवन् हमें बना दो ऐसा,
काम आ सकूँ और के ।।

यही प्रार्थना मेरे भगवन्,
इन हाथों को जोड़ के ।
भगवन् हमें बना दो ऐसा,
काम आ सकूँ और के ।।

धागे क्या दो, चार मिल पड़े,
कोई तोड़ न पाता फिर ।
बिन्दु, बिन्दु जुड़ चलते कितना,
दूर सिन्धु रह जाता फिर ।।

बात हमेशा याद रखें यह,
गोट-मरे, जुग तोड़ के ।
भगवन् हमें बना दो ऐसा,
काम आ सकूँ और के ।।

यही प्रार्थना मेरे भगवन्,
इन हाथों को जोड़ के ।
भगवन् हमें बना दो ऐसा,
काम आ सकूँ और के ।।

बड़ा पुण्य अवसर, आ मिल के
गुरु-सपने साकार करें ।
खुद के लिये जियें पशु भी,
पर-हित जीवन न्यौछार करें ।।

‘सहज निराकुल’ बनते हैं,
आ चलते हैं, कुछ न्योर के ।
भगवन् हमें बना दो ऐसा,
काम आ सकूँ और के ।।

यही प्रार्थना मेरे भगवन्,
इन हाथों को जोड़ के ।
भगवन् हमें बना दो ऐसा,
काम आ सकूँ और के ।।
।। जयमाला पूर्णार्घं ।।

हाईकू
तेरे अनन्त उपकार,
‘रे जाऊँ मैं बलिहार

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