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आचार्य श्री पूजन

गुरु-पाद पूजन – 954

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 
  • परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित

पूजन क्रंमाक 954

नज़र पारखी
गुरु ज्ञान सिन्ध की
अपने ही जैसी मूरत गढ़ दी

दया मयी
क्षमा मयी
करुणा मयी
अपने ही जैसी अहिंसा मूरत गढ़ दी
नज़र पारखी
गुरु ज्ञान सिन्ध की
नज़र पारखी ।।स्थापना।।

सिन्ध क्षीर
भेंट नीर
हित अखीर
महिमा अपार गुरु उपकार की
दया मयी
क्षमा मयी
करुणा मयी
अपने ही जैसी अहिंसा मूरत गढ़ दी
नज़र पारखी
गुरु ज्ञान सिन्ध की
नज़र पारखी ।।जलं।।

हट सुगंध
भेंट गंध
हेत पंथ
महिमा अपार गुरु उपकार की
दया मयी
क्षमा मयी
करुणा मयी
अपने ही जैसी अहिंसा मूरत गढ़ दी
नज़र पारखी
गुरु ज्ञान सिन्ध की
नज़र पारखी ।।चन्दनं।।

खुद समान
भेंट धान
हित विमान
महिमा अपार गुरु उपकार की
दया मयी
क्षमा मयी
करुणा मयी
अपने ही जैसी अहिंसा मूरत गढ़ दी
नज़र पारखी
गुरु ज्ञान सिन्ध की
नज़र पारखी ।।अक्षतं।।

छव अमूल
भेंट फूल
हेत कूल
महिमा अपार गुरु उपकार की
दया मयी
क्षमा मयी
करुणा मयी
अपने ही जैसी अहिंसा मूरत गढ़ दी
नज़र पारखी
गुरु ज्ञान सिन्ध की
नज़र पारखी ।।पुष्पं।।

चरु परात
भेंट ख्यात
हित समाध
महिमा अपार गुरु उपकार की
दया मयी
क्षमा मयी
करुणा मयी
अपने ही जैसी अहिंसा मूरत गढ़ दी
नज़र पारखी
गुरु ज्ञान सिन्ध की
नज़र पारखी ।।नैवेद्यं।।

मण अजीब
भेंट दीव
हित सजीव
महिमा अपार गुरु उपकार की
दया मयी
क्षमा मयी
करुणा मयी
अपने ही जैसी अहिंसा मूरत गढ़ दी
नज़र पारखी
गुरु ज्ञान सिन्ध की
नज़र पारखी ।।दीपं।।

घट अनूप
भेंट धूप
हित स्वरूप
महिमा अपार गुरु उपकार की
दया मयी
क्षमा मयी
करुणा मयी
अपने ही जैसी अहिंसा मूरत गढ़ दी
नज़र पारखी
गुरु ज्ञान सिन्ध की
नज़र पारखी ।।धूपं।।

फल पिटार
भेंट न्यार
हित किनार
महिमा अपार गुरु उपकार की
दया मयी
क्षमा मयी
करुणा मयी
अपने ही जैसी अहिंसा मूरत गढ़ दी
नज़र पारखी
गुरु ज्ञान सिन्ध की
नज़र पारखी ।।फलं।।

थाल स्वर्ण
भेंट अर्घ
हित पवर्ग
महिमा अपार गुरु उपकार की
दया मयी
क्षमा मयी
करुणा मयी
अपने ही जैसी अहिंसा मूरत गढ़ दी
नज़र पारखी
गुरु ज्ञान सिन्ध की
नज़र पारखी ।।अर्घं।।

=हाईकू=
करुणा तर-बतर
तरुवर
ब-सन्त हर

…जयमाला…
उस जमीं पर
सन्त न विद्या सागर सा
सुनते हैं आकर देवों ने पूजा
इस जमीं पर
सन्त न विद्या सागर सा
इस उस जमीं पर

हैं कोरा जिनका मन
जो कभी,
किसी से भी
रखते न अनबन
धौरा जिनका दामन
हैं कोरा जिनका मन
झिर लग करते करुणा बरसा
इस उस जमीं पर
सन्त न विद्या सागर सा
इस उस जमीं पर

उस जमीं पर
सन्त न विद्या सागर सा
सुनते हैं आकर देवों ने पूजा
इस जमीं पर
सन्त न विद्या सागर सा
इस उस जमीं पर

करुणा तरबतर नयन
जिन्हें कभी
किसी से भी
होती नहीं जलन
जन-जन अकारण शरण
करुणा तरबतर नयन

हैं कोरा जिनका मन
जो कभी,
किसी से भी
रखते न अनबन
धौरा जिनका दामन
हैं कोरा जिनका मन
झिर लग करते करुणा बरसा
इस उस जमीं पर
सन्त न विद्या सागर सा
इस उस जमीं पर

उस जमीं पर
सन्त न विद्या सागर सा
सुनते हैं आकर देवों ने पूजा
इस जमीं पर
सन्त न विद्या सागर सा
इस उस जमीं पर
।।जयमाला पूर्णार्घं।।

*हाईकू*
गर हो इच्छा
देते माटी के गुरु वर भी शिक्षा

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