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आचार्य श्री पूजन

गुरु-पाद पूजन – 945

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 
  • परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित

पूजन क्रंमाक 945

जपो मन जय विद्या
छिन छिन
हो रात, या हो दिन
छिन छिन
जपो मन जय विद्या

गदगद वयन
भींगे नयन
साथ गहरी श्रद्धा
जपो मन जय विद्या

छिन छिन
हो रात, या हो दिन
छिन छिन
जपो मन जय विद्या ।।स्थापना।।

जल कंचन
गुरु-चरणन
रखो मन
जपो मन

गदगद वयन
भींगे नयन
साथ गहरी श्रद्धा
जपो मन जय विद्या

छिन छिन
हो रात, या हो दिन
छिन छिन
जपो मन जय विद्या ।।जलं।।

घट चन्दन
गुरु-चरणन
रखो मन
जपो मन

गदगद वयन
भींगे नयन
साथ गहरी श्रद्धा
जपो मन जय विद्या

छिन छिन
हो रात, या हो दिन
छिन छिन
जपो मन जय विद्या ।।चन्दनं।।

अक्षत कण
गुरु-चरणन
रखो मन
जपो मन

गदगद वयन
भींगे नयन
साथ गहरी श्रद्धा
जपो मन जय विद्या

छिन छिन
हो रात, या हो दिन
छिन छिन
जपो मन जय विद्या ।।अक्षतं।।

नन्द सुमन
गुरु-चरणन
रखो मन
जपो मन

गदगद वयन
भींगे नयन
साथ गहरी श्रद्धा
जपो मन जय विद्या

छिन छिन
हो रात, या हो दिन
छिन छिन
जपो मन जय विद्या ।।पुष्पं।।

घृत व्यंजन
गुरु-चरणन
रखो मन
जपो मन

गदगद वयन
भींगे नयन
साथ गहरी श्रद्धा
जपो मन जय विद्या

छिन छिन
हो रात, या हो दिन
छिन छिन
जपो मन जय विद्या ।।नैवेद्यं।।

दीप रतन
गुरु-चरणन
रखो मन
जपो मन

गदगद वयन
भींगे नयन
साथ गहरी श्रद्धा
जपो मन जय विद्या

छिन छिन
हो रात, या हो दिन
छिन छिन
जपो मन जय विद्या ।।दीपं।।

सुगंध अन
गुरु-चरणन
रखो मन
जपो मन

गदगद वयन
भींगे नयन
साथ गहरी श्रद्धा
जपो मन जय विद्या

छिन छिन
हो रात, या हो दिन
छिन छिन
जपो मन जय विद्या ।।धूपं।।

फल नन्दन
गुरु-चरणन
रखो मन
जपो मन

गदगद वयन
भींगे नयन
साथ गहरी श्रद्धा
जपो मन जय विद्या

छिन छिन
हो रात, या हो दिन
छिन छिन
जपो मन जय विद्या ।।फलं।।

जल चन्दन
गुरु-चरणन
रखो मन
जपो मन

गदगद वयन
भींगे नयन
साथ गहरी श्रद्धा
जपो मन जय विद्या

छिन छिन
हो रात, या हो दिन
छिन छिन
जपो मन जय विद्या ।।अर्घ्यं।।

=हाईकू=
बन अमिट थाती
बात गुरु
‘जी’
धस सी जाती

जयमाला
हर कोई सन्त शिरोमण नहीं
हर किसी के नाम
आचार्य श्री जी संबोधन नहीं
बारम्बार प्रणाम
हर किसी के नाम
आचार्य श्री जी संबोधन नहीं
हर कोई सन्त शिरोमण नहीं

वि…विशेष दया के सागर तुम
रखते जो अपनी आखें नम
रख रहे सँभल के हरिक कदम
वि…विशेष दया के सागर तुम

हर कोई सन्त शिरोमण नहीं
हर किसी के नाम
आचार्य श्री जी संबोधन नहीं
बारम्बार प्रणाम
हर किसी के नाम
आचार्य श्री जी संबोधन नहीं
हर कोई सन्त शिरोमण नहीं

वि…विशेष दया के सागर तुम
रखते जो अपनी आखें नम
वसुधा सारी जो तुम्हें कुटुम
वि…विशेष दया के सागर तुम

हर कोई सन्त शिरोमण नहीं
हर किसी के नाम
आचार्य श्री जी संबोधन नहीं
बारम्बार प्रणाम
हर किसी के नाम
आचार्य श्री जी संबोधन नहीं
हर कोई सन्त शिरोमण नहीं

वि…विशेष दया के सागर तुम
रखते जो अपनी आखें नम
भू स्वर्ग उतारे कल्पद्-द्रुम
वि…विशेष दया के सागर तुम

हर कोई सन्त शिरोमण नहीं
हर किसी के नाम
आचार्य श्री जी संबोधन नहीं
बारम्बार प्रणाम
हर किसी के नाम
आचार्य श्री जी संबोधन नहीं
हर कोई सन्त शिरोमण नहीं

वि…विशेष दया के सागर तुम
रखते जो अपनी आखें नम
माहन्त पन्थ माथे कुमकुम
वि…विशेष दया के सागर तुम

हर कोई सन्त शिरोमण नहीं
हर किसी के नाम
आचार्य श्री जी संबोधन नहीं
बारम्बार प्रणाम
हर किसी के नाम
आचार्य श्री जी संबोधन नहीं
हर कोई सन्त शिरोमण नहीं
।।जयमाला पूर्णार्घं।।

=हाईकू=
रहें,
पै
स्पर्शें न संसार जल
हैं गुरु कमल

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