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आचार्य श्री पूजन

गुरु-पाद पूजन – 928

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 
  • परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित

पूजन क्रंमाक 928

गुनगुनाता रहूँ
तराने तेरे
अफसाने तेरे
मन में लाता रहूँ
यूँ ही शामो-सुबह
अय ! इक मिरे जीने की वजह

रह-रह के यूँ ही शामो-सुबह
गुनगुनाता रहूँ
तराने तेरे
अफसाने तेरे
मन में लाता रहूँ
यूँ ही शामो-सुबह
अय ! इक मिरे जीने की वजह ।।स्थापना।।

तेरे द्वार पर यूँ ही रोज आता रहूँ
ले जल गंग-घाट,
ना ‘कि खाली हाथ
तेरे द्वार पर यूँ ही रोज आता रहूँ
रह-रह के यूँ ही शामो-सुबह
गुनगुनाता रहूँ
तराने तेरे
अफसाने तेरे
मन में लाता रहूँ
यूँ ही शामो-सुबह
अय ! इक मिरे जीने की वजह ।।जलं।।

तेरे द्वार पर यूँ ही रोज आता रहूँ
ले गंध विख्यात
ना ‘कि खाली हाथ
तेरे द्वार पर यूँ ही रोज आता रहूँ
रह-रह के यूँ ही शामो-सुबह
गुनगुनाता रहूँ
तराने तेरे
अफसाने तेरे
मन में लाता रहूँ
यूँ ही शामो-सुबह
अय ! इक मिरे जीने की वजह ।।चन्दनं।।

तेरे द्वार पर यूँ ही रोज आता रहूँ
ले धाँ शाल परात
ना ‘कि खाली हाथ
तेरे द्वार पर यूँ ही रोज आता रहूँ
रह-रह के यूँ ही शामो-सुबह
गुनगुनाता रहूँ
तराने तेरे
अफसाने तेरे
मन में लाता रहूँ
यूँ ही शामो-सुबह
अय ! इक मिरे जीने की वजह ।।अक्षतं।।

तेरे द्वार पर यूँ ही रोज आता रहूँ
ले गुल भाँत-भाँत
ना ‘कि खाली हाथ
तेरे द्वार पर यूँ ही रोज आता रहूँ
रह-रह के यूँ ही शामो-सुबह
गुनगुनाता रहूँ
तराने तेरे
अफसाने तेरे
मन में लाता रहूँ
यूँ ही शामो-सुबह
अय ! इक मिरे जीने की वजह ।।पुष्पं।।

तेरे द्वार पर यूँ ही रोज आता रहूँ
ले चरु चारु साथ
ना ‘कि खाली हाथ
तेरे द्वार पर यूँ ही रोज आता रहूँ
रह-रह के यूँ ही शामो-सुबह
गुनगुनाता रहूँ
तराने तेरे
अफसाने तेरे
मन में लाता रहूँ
यूँ ही शामो-सुबह
अय ! इक मिरे जीने की वजह ।।नैवेद्यं।।

तेरे द्वार पर यूँ ही रोज आता रहूँ
ले कर्पूर ‘बात’
ना ‘कि खाली हाथ
तेरे द्वार पर यूँ ही रोज आता रहूँ
रह-रह के यूँ ही शामो-सुबह
गुनगुनाता रहूँ
तराने तेरे
अफसाने तेरे
मन में लाता रहूँ
यूँ ही शामो-सुबह
अय ! इक मिरे जीने की वजह ।।दीपं।।

तेरे द्वार पर यूँ ही रोज आता रहूँ
ले कस्तूर आद
ना ‘कि खाली हाथ
तेरे द्वार पर यूँ ही रोज आता रहूँ
रह-रह के यूँ ही शामो-सुबह
गुनगुनाता रहूँ
तराने तेरे
अफसाने तेरे
मन में लाता रहूँ
यूँ ही शामो-सुबह
अय ! इक मिरे जीने की वजह ।।धूपं।।

तेरे द्वार पर यूँ ही रोज आता रहूँ
ले स्वर्ग फल-पात
ना ‘कि खाली हाथ
तेरे द्वार पर यूँ ही रोज आता रहूँ
रह-रह के यूँ ही शामो-सुबह
गुनगुनाता रहूँ
तराने तेरे
अफसाने तेरे
मन में लाता रहूँ
यूँ ही शामो-सुबह
अय ! इक मिरे जीने की वजह ।।फलं।।

तेरे द्वार पर यूँ ही रोज आता रहूँ
ले द्रव्य सब आठ
ना ‘कि खाली हाथ
तेरे द्वार पर यूँ ही रोज आता रहूँ
रह-रह के यूँ ही शामो-सुबह
गुनगुनाता रहूँ
तराने तेरे
अफसाने तेरे
मन में लाता रहूँ
यूँ ही शामो-सुबह
अय ! इक मिरे जीने की वजह ।।अर्घ्यं।।

=हाईकू=
‘तरु से’
सीख लेना औरों को खींच लेना
गुरु से

जयमाला
आते आते आ गये हो इतने पास
‘कि बन गये हो आती-जाती श्वास

सताये मुझे, अब इक यही डर
‘के इस अपने सपने से भी प्यारे रिश्ते को
सारे जग से न्यारे रिश्ते को
किसी की
‘जि गुरु जी
कहीं लग न जाये नज़र
दिन-दिन रात भर
सताये मुझे, अब इक यही डर

‘कि बन गये हो आती-जाती श्वास
आते आते आ गये हो इतने पास
‘कि बन गये हो आती-जाती श्वास

टप-टप टपकते रहते हैं,
मेरी आँखों से आँसू
दिन-दिन रात भर
सताये मुझे, अब इक यही डर
‘के कहीं हो न जाये मुझसे जुदा तू

आते आते आ गये हो इतने पास
‘कि बन गये हो आती-जाती श्वास

सताये मुझे, अब इक यही डर
‘के इस अपने सपने से भी प्यारे रिश्ते को
सारे जग से न्यारे रिश्ते को
किसी की
‘जि गुरु जी
कहीं लग न जाये नज़र
दिन-दिन रात भर
सताये मुझे, अब इक यही डर

‘कि बन गये हो आती-जाती श्वास
आते आते आ गये हो इतने पास
‘कि बन गये हो आती-जाती श्वास

नींद मुझे आती नहीं,
जागूँ में रात सारी
उजयारी ही कब रहती है,
आती भी रात काली

टप-टप टपकते रहते हैं,
मेरी आँखों से आँसू
दिन-दिन रात भर
सताये मुझे, अब इक यही डर
‘के कहीं हो न जाये मुझसे जुदा तू

आते आते आ गये हो इतने पास
‘कि बन गये हो आती-जाती श्वास

सताये मुझे, अब इक यही डर
‘के इस अपने सपने से भी प्यारे रिश्ते को
सारे जग से न्यारे रिश्ते को
किसी की
‘जि गुरु जी
कहीं लग न जाये नज़र
दिन-दिन रात भर
सताये मुझे, अब इक यही डर

‘कि बन गये हो आती-जाती श्वास
आते आते आ गये हो इतने पास
‘कि बन गये हो आती-जाती श्वास

उठाता रहता है सवालात
फिर फिर के ये मेरा मन
खिलाने या मुर्झाने सुमन
थी आई किसलिये किरण

टप-टप टपकते रहते हैं,
मेरी आँखों से आँसू
दिन-दिन रात भर
सताये मुझे, अब इक यही डर
‘के कहीं हो न जाये मुझसे जुदा तू

आते आते आ गये हो इतने पास
‘कि बन गये हो आती-जाती श्वास

सताये मुझे, अब इक यही डर
‘के इस अपने सपने से भी प्यारे रिश्ते को
सारे जग से न्यारे रिश्ते को
किसी की
‘जि गुरु जी
कहीं लग न जाये नज़र
दिन-दिन रात भर
सताये मुझे, अब इक यही डर

‘कि बन गये हो आती-जाती श्वास
आते आते आ गये हो इतने पास
‘कि बन गये हो आती-जाती श्वास
।। जयमाला पूर्णार्घं ।।

=हाईकू=
देते हैं सिल उधड़े रिश्ते
गुरु और फरिश्ते

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