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आचार्य श्री पूजन

गुरु-पाद पूजन – 926

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 
  • परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित

पूजन क्रंमाक 926

बसा, आँखों मे तू,
हुआ ओझल कब है ।
आके ख्वाबों में तू,
हुआ बोझिल कब है ।।
सब है
यहां तक ‘कि तू मेरा रब है ।
तेरे सिवा,
किसी और से मेरा, लगा ये मन कब है ।।स्थापना।।

क्यूँ न चढ़ाऊँ मैं तुम्हें नीर
है तू ही तो मेरी तकदीर
सब है
यहां तक ‘कि तू मेरा रब है ।
तेरे सिवा,
किसी और से मेरा, लगा ये मन कब है।।जलं।।

क्यूँ न चढ़ाऊँ मैं तुम्हें चन्दन
बिन तेरे कब धड़के मेरी धड़कन
सब है
यहां तक ‘कि तू मेरा रब है ।
तेरे सिवा,
किसी और से मेरा, लगा ये मन कब है ।।चन्दनं।।

क्यूँ न चढ़ाऊँ मैं तुम्हें तण्डुल
बिन तेरे मैं बे खुशबू गुल
सब है
यहां तक ‘कि तू मेरा रब है ।
तेरे सिवा,
किसी और से मेरा, लगा ये मन कब है।।अक्षतं।।

क्यूँ न चढ़ाऊँ मैं तुम्हें कुसुम
तिलक तुम्हीं मेरे माथे की कुमकुम
सब है
यहां तक ‘कि तू मेरा रब है ।
तेरे सिवा,
किसी और से मेरा, लगा ये मन कब है।।पुष्पं।।

क्यूँ न चढ़ाऊँ मैं तुम्हें षट्-रस
तुम बिन गुजरा क्षण मानो बरस
सब है
यहां तक ‘कि तू मेरा रब है ।
तेरे सिवा,
किसी और से मेरा, लगा ये मन कब है।।नैवेद्यं।।

क्यूँ न चढ़ाऊँ मैं तुम्हें ज्योति
तुम्हीं पे तो लुटाये दृग् मेरी मोति
सब है
यहां तक ‘कि तू मेरा रब है ।
तेरे सिवा,
किसी और से मेरा, लगा ये मन कब है।।दीपं।।

क्यूँ न चढ़ाऊँ मैं तुम्हें सौरभ
मैं सर्फ तेरा हूँ, है मुझे गौरव
सब है
यहां तक ‘कि तू मेरा रब है ।
तेरे सिवा,
किसी और से मेरा, लगा ये मन कब है।।धूपं।।

क्यूँ न चढ़ाऊँ मैं तुम्हें श्री फल
मैं तरसूँ पाने तुम्हारे दो पल
सब है
यहां तक ‘कि तू मेरा रब है ।
तेरे सिवा,
किसी और से मेरा, लगा ये मन कब है।।फलं।।

क्यूँ न चढ़ाऊँ मैं तुम्हें अरघ
तुम हो ही हटके सबके कुछ अलग
सब है
यहां तक ‘कि तू मेरा रब है ।
तेरे सिवा,
किसी और से मेरा, लगा ये मन कब है।।अर्घ्यं।।

=हाईकू=
मीठा ‘गुर’ उ सी जुबां
किसी की तो सिर्फ़ गुरु जी

जयमाला
रह रहकर आती है
तुम्हारी याद
दिन हो या रात
तुम्हारी याद रह रहकर आती है

देखते ही मुझे,
लेने भेजना अपनी नज़र
न ऐसे वैसे ही
रोज के जैसे ही
मुस्कुरा कर
मुझे लेने भेजना अपनी नज़र
देखते ही मुझे
याद करते ही उसे
मेरी आँख भर आती है

रह रहकर आती है
तुम्हारी याद
दिन हो या रात
तुम्हारी याद रह रहकर आती है

देखते ही मुझे,
देने लगना, दुआएँ दिल खोलकर
न ऐसे वैसे ही
रोज के जैसे ही
आँखें मूँद कर
मुझे देने लगना, दुआएँ दिल खोलकर
देखते ही मुझे
याद करते ही उसे
मेरी आँख भर आती है

रह रहकर आती है
तुम्हारी याद
दिन हो या रात
तुम्हारी याद रह रहकर आती है

देखते ही मुझे,
कहना कैसे हो, मेरे टुकड़े जिगर
न ऐसे वैसे ही
रोज के जैसे ही
फेर हाथ सिर पर
कहना कैसे हो, मेरे टुकड़े जिगर
देखते ही मुझे
याद करते ही उसे
मेरी आँख भर आती है

रह रहकर आती है
तुम्हारी याद
दिन हो या रात
तुम्हारी याद रह रहकर आती है
।। जयमाला पूर्णार्घं।।

=हाईकू=
कहती गुरु जुबां पल पल
“मैं आया” तू चल

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