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आचार्य श्री पूजन

गुरु-पाद पूजन – 898

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 
  • परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित

पूजन क्रंमाक 898

=हाईकू=
दे बता क्या तू
मुझसे, मेरी गली से नाराज है ।
गुजरे तेज बिजली सा
जो सुने न आवाज है ।।

जो बन पडी कोई गुस्ताखी,
तो दे भी दे मुआफी ।
क्यूँ नाराज है, आशुतोष
तू ही तो एक आज है ।।स्थापना।।

तेरा भक्त हूँ मैं
मैं लाया हूँ भेंटने तुझे घट गंग जल
जाने क्यूँ न आया है ‘के आऊँगा
अब तलक वो तेरा कल ।।जलं।।

तेरा भक्त हूँ मैं
मैं लाया हूँ भेंटने तुझे मलय संदल
जाने क्यूँ न आया है ‘के आऊँगा
अब तलक वो तेरा कल ।।चन्दनं।।

तेरा भक्त हूँ मैं
मैं लाया हूँ भेंटने तुझे अक्षत धवल
जाने क्यूँ न आया है ‘के आऊँगा
अब तलक वो तेरा कल ।।अक्षतं।।

तेरा भक्त हूँ मैं
मैं लाया हूँ भेंटने तुझे शत-दल कमल
जाने क्यूँ न आया है ‘के आऊँगा
अब तलक वो तेरा कल ।।पुष्पं।।

तेरा भक्त हूँ मैं
मैं लाया हूँ भेंटने तुझे चरु घृत नवल
जाने क्यूँ न आया है ‘के आऊँगा
अब तलक वो तेरा कल ।।नैवेद्यं।।

तेरा भक्त हूँ मैं
मैं लाया हूँ भेंटने तुझे गंध परिमल
जाने क्यूँ न आया है ‘के आऊँगा
अब तलक वो तेरा कल ।।धूपं।।

तेरा भक्त हूँ मैं
मैं लाया हूँ भेंटने तुझे वन नन्द फल
जाने क्यूँ न आया है ‘के आऊँगा
अब तलक वो तेरा कल ।।फलं।

तेरा भक्त हूँ मैं
मैं लाया हूँ भेंटने तुझे द्रव दृग् सजल
जाने क्यूँ न आया है ‘के आऊँगा
अब तलक वो तेरा कल ।।अर्घ्यं।।

=हाईकू=
मेरी, घर की भी आरज़ू
आयेगा कब द्वारे तू

जयमाला
हाथों में लिये कलशा
मैं रहता हूँ खड़ा
बिलकुल ही अलग सा

आना तो दूर,
तुमने तो देखा भी नहीं
उठा के नजर
जर्रा-सा भी गुरुवर

भक्ति में रहती क्या कमी
आँखों में रहती ही नमी
कर दो कृपा की बरसा
कभी,
मना सकूँ मैं भी जलसा

मैं रहता हूँ खड़ा
बिलकुल ही अलग सा
हाथों में लिये कलशा
मैं रहता हूँ खड़ा
बिलकुल ही अलग सा

आना तो दूर,
तुमने तो देखा भी नहीं
उठा के नजर
जर्रा-सा भी गुरुवर

भक्ति क्या रहती उन्नीसी
रहती ही वाणी गद-गद सी
श्रद्धा सुमन
रोमाञ्च धन
रहती ही वाणी गद-गद सी
भक्ति क्या रहती उन्नीसी
रहती ही वाणी गद-गद सी

हाथों में लिये कलशा
मैं रहता हूँ खड़ा
बिलकुल ही अलग सा

आना तो दूर,
तुमने तो देखा भी नहीं
उठा के नजर
जर्रा-सा भी गुरुवर

भक्ति में रहती क्या कमी
आँखों में रहती ही नमी
कर दो कृपा की बरसा
कभी,
मना सकूँ मैं भी जलसा

मैं रहता हूँ खड़ा
बिलकुल ही अलग सा
हाथों में लिये कलशा
मैं रहता हूँ खड़ा
बिलकुल ही अलग सा

आना तो दूर,
तुमने तो देखा भी नहीं
उठा के नजर
जर्रा-सा भी गुरुवर
।। जयमाला पूर्णार्घं ।।

=हाईकू=
होती जलन मुझे,
कहे कोई जो अपना तुझे

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