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आचार्य श्री पूजन

गुरु-पाद पूजन – 891

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 
  • परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित

पूजन क्रंमाक 891

चाहे, या न चाहे तू मुझे
मैं दिल से चाहता हूँ तुझे

मैं तेरा दीवाना हूँ इस कदर
कभी,
पल पलक भी
न आता जो तू नजर
तो आती है मेरी आँख भर
गुरुवर
अय ! मेरे गुरुवर ।।स्थापना।।

भरे जल से
भेंटूँ कलशे
मैं रोज आकर
तेरे दर पर
गुरुवर
अय ! मेरे गुरुवर
मैं तेरा दीवाना हूँ इस कदर
कभी,
पल पलक भी
न आता जो तू नजर
तो आती है मेरी आँख भर
गुरुवर
अय ! मेरे गुरुवर ।।जलं।।

झार कंचन
भेंटूँ चन्दन
मैं रोज आकर
तेरे दर पर
गुरुवर
अय ! मेरे गुरुवर
मैं तेरा दीवाना हूँ इस कदर
कभी,
पल पलक भी
न आता जो तू नजर
तो आती है मेरी आँख भर
गुरुवर
अय ! मेरे गुरुवर ।।चन्दनं।।

सुरभित अछत
भेंटूँ अक्षत
मैं रोज आकर
तेरे दर पर
गुरुवर
अय ! मेरे गुरुवर
मैं तेरा दीवाना हूँ इस कदर
कभी,
पल पलक भी
न आता जो तू नजर
तो आती है मेरी आँख भर
गुरुवर
अय ! मेरे गुरुवर ।।अक्षतं।।

भेंटूँ फुलवा
‘नन्द’ कुल का
मैं रोज आकर
तेरे दर पर
गुरुवर
अय ! मेरे गुरुवर
मैं तेरा दीवाना हूँ इस कदर
कभी,
पल पलक भी
न आता जो तू नजर
तो आती है मेरी आँख भर
गुरुवर
अय ! मेरे गुरुवर ।।पुष्पं।।

घिरत समेत
भेंटूँ नवेद
मैं रोज आकर
तेरे दर पर
गुरुवर
अय ! मेरे गुरुवर
मैं तेरा दीवाना हूँ इस कदर
कभी,
पल पलक भी
न आता जो तू नजर
तो आती है मेरी आँख भर
गुरुवर
अय ! मेरे गुरुवर ।।नैवेद्यं।।

मोती सीप
भेंटूँ प्रदीप
मैं रोज आकर
तेरे दर पर
गुरुवर
अय ! मेरे गुरुवर
मैं तेरा दीवाना हूँ इस कदर
कभी,
पल पलक भी
न आता जो तू नजर
तो आती है मेरी आँख भर
गुरुवर
अय ! मेरे गुरुवर ।।दीपं।।

दिव संबंध
भेंटूँ सुगंध
मैं रोज आकर
तेरे दर पर
गुरुवर
अय ! मेरे गुरुवर
मैं तेरा दीवाना हूँ इस कदर
कभी,
पल पलक भी
न आता जो तू नजर
तो आती है मेरी आँख भर
गुरुवर
अय ! मेरे गुरुवर ।।धूपं।।

प्रासुक नवल
भेंटूँ श्रीफल
मैं रोज आकर
तेरे दर पर
गुरुवर
अय ! मेरे गुरुवर
मैं तेरा दीवाना हूँ इस कदर
कभी,
पल पलक भी
न आता जो तू नजर
तो आती है मेरी आँख भर
गुरुवर
अय ! मेरे गुरुवर ।।फलं।।

भेंटूँ द्रव सब
धवल नव-नव
मैं रोज आकर
तेरे दर पर
गुरुवर
अय ! मेरे गुरुवर
मैं तेरा दीवाना हूँ इस कदर
कभी,
पल पलक भी
न आता जो तू नजर
तो आती है मेरी आँख भर
गुरुवर
अय ! मेरे गुरुवर ।।अर्घ्यं।।

=हाईकू=
ब्रह्मा न विष्णु न महेश,
धी जैसी गुरु विशेष

जयमाला
।। विद्या सागर सूर निराले ।।

राहु प्रमाद न आँख दिखाता ।
दल बादल मद झाँप न पाता ।।
नूर आसमां रखने वाले ।
विद्या सागर सूर निराले ।।

अपलक जिन्हें देख लें बच्चे ।
पाप ताप न, मन के सच्चे ।।
छवि शश पूनम, जग उजियाले ।
विद्या सागर सूर निराले ।।

प्रफुल भविष्य मन, जागृत जगती ।
विबुध दीप ले करते भगती ।।
दिन-मण सिर्फ न निश ध्रुव तारे ।
विद्या सागर सूर निराले ।।

नूर आसमां रखने वाले ।
छवि शश पूनम, जग उजियाले
दिन-मण सिर्फ न निश ध्रुव तारे ।
विद्या सागर सूर निराले ।।
।। जयमाला पूर्णार्घं ।।

=हाईकू=
जर्रा से गुरु तेज सिवा,
सूरज और है ही क्या

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