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आचार्य श्री पूजन

गुरु-पाद पूजन – 851

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 
  • परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित

पूजन क्रंमाक 851

अपलक,
पाता रहूँ तेरी झलक,
यूँ ही करीब बैठ के तेरे
अय ! गुरुदेव मेरे ।।स्थापना।।

मैं चढ़ाऊँ दृग्-जल
पाने कुछ स्वर्णिम पल
‘के अपलक
पाता रहूँ तेरी झलक,
यूँ ही करीब बैठ के तेरे
अय ! गुरुदेव मेरे ।।जलं।।

मैं चढ़ाऊँ चन्दन
पाने कुछ अनछुए क्षण
‘के अपलक
पाता रहूँ तेरी झलक,
यूँ ही करीब बैठ के तेरे
अय ! गुरुदेव मेरे ।।चन्दनं।।

मैं चढ़ाऊँ अक्षत
पाने शिव, सुन्दर सत्
‘के अपलक
पाता रहूँ तेरी झलक,
यूँ ही करीब बैठ के तेरे
अय ! गुरुदेव मेरे ।।अक्षतं।।

मैं चढ़ाऊँ दिव-गुल
पाने कुछ क्षण मंजुल
‘के अपलक
पाता रहूँ तेरी झलक,
यूँ ही करीब बैठ के तेरे
अय ! गुरुदेव मेरे ।।पुष्पं।।

मैं चढ़ाऊँ चरु घृत
पाने कुछ क्षण अद्भुत
‘के अपलक
पाता रहूँ तेरी झलक,
यूँ ही करीब बैठ के तेरे
अय ! गुरुदेव मेरे ।।नैवेद्यं।।

मैं भेंटूँ दीप अबुझ
पाने कुछ अपने भाँत कुछ
‘के अपलक
पाता रहूँ तेरी झलक,
यूँ ही करीब बैठ के तेरे
अय ! गुरुदेव मेरे ।।दीपं।

मैं भेंटूँ सुगन्ध घट
पाने कुछ अनुभव हट
‘के अपलक
पाता रहूँ तेरी झलक,
यूँ ही करीब बैठ के तेरे
अय ! गुरुदेव मेरे ।।धूपं।।

मैं चढ़ाऊँ श्री फल
पाने कुछ निमिष नवल
‘के अपलक
पाता रहूँ तेरी झलक,
यूँ ही करीब बैठ के तेरे
अय ! गुरुदेव मेरे ।।फलं।।

मैं भेंटूँ थाल अरघ
पाने कुछ लम्हें अलग
‘के अपलक
पाता रहूँ तेरी झलक,
यूँ ही करीब बैठ के तेरे
अय ! गुरुदेव मेरे ।।अर्घ्यं।।

=हाईकू=
रूठे,
झूटे भी तुम
मेरा टूटना,
‘होगा’
झूठ ना

जयमाला
न जाओ, और कहीं छोड़कर
आ जाओ यहीं, श्री गुरु के द्वार पर

गुरु जी से माँगना न पड़ा,
और मुँह माँगा मिल चला
लगता कल्प-तरु दूसरी कक्षा न पढ़ा
बिना माँगे कुछ भी देता ही नहीं
आ जाओ यहीं,
न जाओ, और कहीं छोड़कर
आ जाओ यहीं, श्री गुरु के द्वार पर

घिसते रहो चिराग,
तब कहीं जा चमके भाग,
लगता चिराग दूसरी कक्षा न पढ़ा
गुरु जी से माँगना न पड़ा,
और मुँह माँगा मिल चला
लगता चिराग दूसरी कक्षा न पढ़ा
बिना घिसे खबर लेता ही नहीं
आ जाओ यहीं,
न जाओ, और कहीं छोड़कर
आ जाओ यहीं, श्री गुरु के द्वार पर

गुरु जी से माँगना न पड़ा,
और मुँह माँगा मिल चला
लगता कल्प-तरु दूसरी कक्षा न पढ़ा
बिना माँगे कुछ भी देता ही नहीं
आ जाओ यहीं,
न जाओ, और कहीं छोड़कर
आ जाओ यहीं, श्री गुरु के द्वार पर

घुमाते रहो छड़ी,
तब कहीं जा बनती बिगड़ी
कतार इसी काम-धेनु खड़ी
खड़ी आगे ही चिंता-मणी
लगता इन्होंने आखर ढ़ाई न पढ़ा
बिना याचना देने से नाता ही नहीं
आ जाओ यहीं,
न जाओ, और कहीं छोड़कर
आ जाओ यहीं, श्री गुरु के द्वार पर

गुरु जी से माँगना न पड़ा,
और मुँह माँगा मिल चला
लगता कल्प-तरु दूसरी कक्षा न पढ़ा
बिना माँगे कुछ भी देता ही नहीं
आ जाओ यहीं,
न जाओ, और कहीं छोड़कर
आ जाओ यहीं, श्री गुरु के द्वार पर
।। जयमाला पूर्णार्घं ।।

=हाईकू=
नज़रों से, हो सके छू पाना,
दूर इतनी जाना

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