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आचार्य श्री पूजन

गुरु-पाद पूजन – 83

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 

परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित

पूजन क्रमांक 83

किया वादा देने का साथ तुमने, जबसे ।
है फेरा मेरे सिर पे हाथ तुमने, तबसे ।।
गुम कहीं थकान हुई ।
मेरी जिन्दगी आसान हुई ।
मैं जुड़ने लगा, बेजोड़ अदब से, तब से ।।
किया वादा देने का साथ तुमने, जब से ।।स्थापना।।

मैं तेरे चरणों में, लाया हूँ जल ।
हो चलीं आँखें परहित सजल ।।
गुम कहीं थकान हुई ।
मेरी जिन्दगी आसान हुई ।
मैं जुड़ने लगा, बेजोड़ अदब से, तब से ।।
किया वादा देने का साथ तुमने, जब से ।।जलं।।

मैं तेरे चरणों में, लाया चन्दन ।
पा गया लो महक चन्दन सी मन ।
गुम कहीं थकान हुई ।
मेरी जिन्दगी आसान हुई ।
मैं जुड़ने लगा, बेजोड़ अदब से, तब से ।।
किया वादा देने का साथ तुमने, जब से ।।चंदन।।

मैं तेरे चरणों में, लाया अक्षत ।
हो चला लो, चित शिव सुन्दर सत ।
गुम कहीं थकान हुई ।
मेरी जिन्दगी आसान हुई ।
मैं जुड़ने लगा, बेजोड़ अदब से, तब से ।।
किया वादा देने का साथ तुमने, जब से।।अक्षतं।।

मैं तेरे चरणों में, लाया हूँ कुसुम ।
हो चली लो वसुधा मुझे कुटुम ।
गुम कहीं थकान हुई ।
मेरी जिन्दगी आसान हुई ।
मैं जुड़ने लगा, बेजोड़ अदब से, तब से ।।
किया वादा देने का साथ तुमने, जब से ।।पुष्पं।।

मैं तेरे चरणों में, लाया षट् रस।
हो चला लो, मुझको सम्यक् दरश ।
गुम कहीं थकान हुई ।
मेरी जिन्दगी आसान हुई ।
मैं जुड़ने लगा, बेजोड़ अदब से, तब से ।।
किया वादा देने का साथ तुमने, जब से ।।नेवैधं।।

मैं तेरे चरणों में, लाया दीपक ।
हो चली लो, खड़ी यम द्वार धी बक।
गुम कहीं थकान हुई ।
मेरी जिन्दगी आसान हुई ।
मैं जुड़ने लगा, बेजोड़ अदब से, तब से ।।
किया वादा देने का साथ तुमने, जब से ।।दीपं।।

मैं तेरे चरणों में, लाया हूँ अगर।
खो चाली लो नजर श्याही नजर।
गुम कहीं थकान हुई ।
मेरी जिन्दगी आसान हुई ।
मैं जुड़ने लगा, बेजोड़ अदब से, तब से ।।
किया वादा देने का साथ तुमने, जब से ।।धूपं।।

मैं तेरे चरणों में, लाया हूँ फल ।।
हो चला लो, जल से भिन्न कमल।
गुम कहीं थकान हुई ।
मेरी जिन्दगी आसान हुई ।
मैं जुड़ने लगा, बेजोड़ अदब से, तब से ।।
किया वादा देने का साथ तुमने, जब से।।फलं।।

मैं तेरे चरणों में, लाया हूँ अरघ ।
दिख चला लो, सामने शिव सुरग।
गुम कहीं थकान हुई ।
मेरी जिन्दगी आसान हुई ।
मैं जुड़ने लगा, बेजोड़ अदब से, तब से ।।
किया वादा देने का साथ तुमने, जब से ।।अर्ध्य ।।

“दोहा”

मानी स्वर्ण सुहाग सी,
गुरु पद पंकज सेव ।
आ क्षण कुछ स्वर्णिम करें,
पाद मूल गुरु देव ।।

“जयमाला”

बड़ा बनना,
आसान नहीं इतना,
घड़ा बनना,
है काफी ही कठिन माटी,
पार करनी होती घाटी,
वो भी अनेक,
न कि सिर्फ एक ।
ये सोच समझ लें देख ।।
हाँ हाँ यही है वो कुदाल,
जिससे खोदी तू जायेगी ।
जिसपे खो धी-तू जायेगी,
हाँ है यही वो चक्र कुलाल ।।

खड़ा चढ़ना,
बड़ा बनना,
आसान नहीं इतना,
घड़ा बनना,
है काफी ही कठिन माटी,
पार करनी होती घाटी,
वो भी अनेक,
न कि सिर्फ एक ।
ये सोच सझ लें देख ।।

हाँ हाँ यही है वो सोटा,
जिससे पीटी तू जायेगी ।
जिस में झोकी तू जायोगी,
हाँ हाँ यही है वो अबा ।।

खरा बनना
बड़ा बनना,
आसान नहीं इतना,
घड़ा बनना,
है काफी ही कठिन माटी,
पार करनी होती घाटी,
वो भी अनेक,
न कि सिर्फ एक ।
ये सोच समझ लें देख ।।

हाँ…हाँ शिल्पी जी,
है सब कुछ मंजूर मुझे,
मैं उठाती शपथ,
बस आप करना मत,
अपने अपनों से दूर मुझे ।
अपने चरणों से दूर मुझे ।
हाँ हाँ शिल्पी जी,
है सब कुछ मंजूर मुझे ।।

दोहा

आये न आये भले,
गुरु गुण महिमा पार ।
सर-सुदूर आने लगे,
ठण्डी नहीं बयार ।।

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