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आचार्य श्री पूजन

गुरु-पाद पूजन – 810

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 
  • परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित

पूजन क्रंमाक 810

चन्द्रमा चकोरा जैसे,
मकरन्द भौंरा जैसे,
तुम्हें चाहता,
अय ! मेरे मन के देवता
ये मेरा मन मयूरा वैसे,
तुम्हें चाहता,
अय ! मेरे मन के देवता ।।स्थापना।।

न यूँ ही आता हूँ,
मैं चढ़ाने रोज ही दृग्-जल,
मैं चाहता हूँ, तुम्हारे अपने दो-चार पल,
अय ! मेरे मन के देवता
चन्द्रमा चकोरा जैसे,
मकरन्द भौंरा जैसे,
तुम्हें चाहता,
अय ! मेरे मन के देवता
ये मेरा मन मयूरा वैसे,
तुम्हें चाहता,
अय ! मेरे मन के देवता ।।जलं।।

न यूँ ही आता हूँ,
मैं चढ़ाने रोज ही चन्दन,
मैं चाहता हूँ, घर अपने आप चरण वन्दन,
अय ! मेरे मन के देवता
चन्द्रमा चकोरा जैसे,
मकरन्द भौंरा जैसे,
तुम्हें चाहता,
अय ! मेरे मन के देवता
ये मेरा मन मयूरा वैसे,
तुम्हें चाहता,
अय ! मेरे मन के देवता ।।चन्दनं।।

न यूँ ही आता हूँ,
मैं चढ़ाने रोज ही अक्षत,
मैं चाहता हूँ, बनना आपका अनन्य भगत,
अय ! मेरे मन के देवता
चन्द्रमा चकोरा जैसे,
मकरन्द भौंरा जैसे,
तुम्हें चाहता,
अय ! मेरे मन के देवता
ये मेरा मन मयूरा वैसे,
तुम्हें चाहता,
अय ! मेरे मन के देवता ।।अक्षतं।।

न यूँ ही आता हूँ,
मैं चढ़ाने रोज ही लर-गुल,
मैं चाहता हूँ, दरवेश प्रवेश आप गुरुकुल,
अय ! मेरे मन के देवता
चन्द्रमा चकोरा जैसे,
मकरन्द भौंरा जैसे,
तुम्हें चाहता,
अय ! मेरे मन के देवता
ये मेरा मन मयूरा वैसे,
तुम्हें चाहता,
अय ! मेरे मन के देवता ।।पुष्पं।।

न यूँ ही आता हूँ,
मैं चढ़ाने रोज ही चरु‌-घृत,
मैं चाहता हूँ, आप मुख अमोल दो बोल अमृत,
अय ! मेरे मन के देवता
चन्द्रमा चकोरा जैसे,
मकरन्द भौंरा जैसे,
तुम्हें चाहता,
अय ! मेरे मन के देवता
ये मेरा मन मयूरा वैसे,
तुम्हें चाहता,
अय ! मेरे मन के देवता ।।नैवेद्यं।।

न यूँ ही आता हूँ,
मैं चढ़ाने रोज ही दीपक,
मैं चाहता हूँ, बाहर स्वप्न भी आप झलक,
अय ! मेरे मन के देवता
चन्द्रमा चकोरा जैसे,
मकरन्द भौंरा जैसे,
तुम्हें चाहता,
अय ! मेरे मन के देवता
ये मेरा मन मयूरा वैसे,
तुम्हें चाहता,
अय ! मेरे मन के देवता ।।दीपं।।

न यूँ ही आता हूँ,
मैं चढ़ाने रोज ही सुरभी,
मैं चाहता हूँ, नेक एक मुस्कान गुरु जी,
अय ! मेरे मन के देवता
चन्द्रमा चकोरा जैसे,
मकरन्द भौंरा जैसे,
तुम्हें चाहता,
अय ! मेरे मन के देवता
ये मेरा मन मयूरा वैसे,
तुम्हें चाहता,
अय ! मेरे मन के देवता ।।धूपं।।

न यूँ ही आता हूँ,
मैं चढ़ाने रोज ही भेले,
मैं चाहता हूँ, पड़गाना तुम्हें कभी अकेले,
अय ! मेरे मन के देवता
चन्द्रमा चकोरा जैसे,
मकरन्द भौंरा जैसे,
तुम्हें चाहता,
अय ! मेरे मन के देवता
ये मेरा मन मयूरा वैसे,
तुम्हें चाहता,
अय ! मेरे मन के देवता ।।फलं।।

न यूँ ही आता हूँ,
मैं चढ़ाने रोज ही जल-फल,
मैं चाहता हूँ, खुशियों वाला आँखों में जल,
अय ! मेरे मन के देवता
चन्द्रमा चकोरा जैसे,
मकरन्द भौंरा जैसे,
तुम्हें चाहता,
अय ! मेरे मन के देवता
ये मेरा मन मयूरा वैसे,
तुम्हें चाहता,
अय ! मेरे मन के देवता ।।अर्घ्यं।।

=हाईकू=
खून के रिश्ते से बड़ के रिश्ते,
श्री गुरु फरिश्ते

जयमाला
गुरु जी हमारे
प्राणों से प्यारे
उनके नक्से कदम पे बढ़ते जाना है
कभी,
भूल से भी,
उनका दिल न दुखाना है
दुनिया से न्यारे,
प्राणों से प्यारे
गुरु जी हमारे
प्राणों से प्यारे
उनके नक्से कदम पे बढ़ते जाना है
कभी,
भूल से भी,
उनका दिल न दुखाना है

जब ढ़ेर जन्मों का
न ऐसा वैसा,
पुण्य सातिशय जुड़ता है,
सानिध्य गुरु जी का,
तब कहीं जाके,
थोड़ा बहुत मिलता है
‘रे सहजो-सुलभ कहाँ जन्नत नजारे,

दुनिया से न्यारे,
प्राणों से प्यारे
गुरु जी हमारे
प्राणों से प्यारे
उनके नक्से कदम पे बढ़ते जाना है
कभी,
भूल से भी,
उनका दिल न दुखाना है

हैं देखने जो, भगवान्‌ को
ये और वो दोनों ही जहां,
गुरु जी के रूप में,
भगवान् ही तो उतरते है यहाँ,
टकने चूनर चाँद-सितारे,
‘रे सहजो-सुलभ कहाँ जन्नत नजारे,

जब ढ़ेर जन्मों का
न ऐसा वैसा,
पुण्य सातिशय जुड़ता है,
सानिध्य गुरु जी का,
तब कहीं जाके,
थोड़ा बहुत मिलता है
‘रे सहजो-सुलभ कहाँ जन्नत नजारे,

दुनिया से न्यारे,
प्राणों से प्यारे
गुरु जी हमारे
प्राणों से प्यारे
उनके नक्से कदम पे बढ़ते जाना है
कभी,
भूल से भी, 
उनका दिल न दुखाना है
।। जयमाला पूर्णार्घं ।।

=हाईकू=
और छोड़िये,
दिखातीं नेक राहें,
गुरु निगाहें

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