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आचार्य श्री पूजन

गुरु-पाद पूजन – 800

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 
  • परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित

पूजन क्रंमाक 800

दी ये जिन्दगी है तेरी,
इस ‘दीये’ दी ये रोशनी है तेरी
थी चल रही जोर से
हवा चारों ओर से
कर ओट तुम्हीं ने तो,
आँचल के छोर से
की रक्षा है मेरी,
दी ये हर-खुशी है तेरी
दी ये जिन्दगी है तेरी
इस ‘दीये’ दी ये रोशनी है तेरी ।।स्थापना।।

क्यूँ न चढ़ाऊँ, में तो चढ़ाऊँगा कलशे,
न एैसे वैसे कंचन के,
भर क्षीर सिन्ध जल से,
दी ये हर-खुशी है तेरी
दी ये जिन्दगी है तेरी
इस ‘दीये’ दी ये रोशनी है तेरी ।।जलं।।

क्यूँ न चढ़ाऊँ, में तो चढ़ाऊँगा चन्दन,
न एैसा वैसा मलयजी,
के महके धरा-गगन,
दी ये हर-खुशी है तेरी
दी ये जिन्दगी है तेरी
इस ‘दीये’ दी ये रोशनी है तेरी ।।चन्दनं।।

क्यूँ न चढ़ाऊँ, में तो चढ़ाऊँगा अक्षत,
न ऐसे वैसे धाँ शालिक,
कण-कण माफिक नक्षत,
दी ये हर-खुशी है तेरी
दी ये जिन्दगी है तेरी
इस ‘दीये’ दी ये रोशनी है तेरी ।।अक्षतं।।

क्यूँ न चढ़ाऊँ, में तो चढ़ाऊँगा कुसुम,
न ऐसे वैसे महकते,
‘के कुछ कुछ सुर-द्रुम,
दी ये हर-खुशी है तेरी
दी ये जिन्दगी है तेरी
इस ‘दीये’ दी ये रोशनी है तेरी ।।पुष्पं।।

क्यूँ न चढ़ाऊँ, में तो चढ़ाऊँगा चरु घी,
न ऐसी वैसी गाय गिर,
‘जि वो भी अपहरी,
दी ये हर-खुशी है तेरी
दी ये जिन्दगी है तेरी
इस ‘दीये’ दी ये रोशनी है तेरी ।।नैवेद्यं।।

क्यूँ न चढ़ाऊँ, में तो चढ़ाऊँगा दीवा,
न ऐसी वैसी लौं अबुझ,
नयन-सुख संजीवा,
दी ये हर-खुशी है तेरी
दी ये जिन्दगी है तेरी
इस ‘दीये’ दी ये रोशनी है तेरी ।।दीपं।।

क्यूँ न चढ़ाऊँ, में तो चढ़ाऊँगा सुगंधी,
न ऐसी वैसी कस्तूरी,
चन्दन चूरी कपूरी निरी,
दी ये हर-खुशी है तेरी
दी ये जिन्दगी है तेरी
इस ‘दीये’ दी ये रोशनी है तेरी ।।धूपं।।

क्यूँ न चढ़ाऊँ, में तो चढ़ाऊँगा श्री फल,
न ऐसे वैसे दक्षिण के,
गदगद हृदय, दृग्-सजल,
दी ये हर-खुशी है तेरी
दी ये जिन्दगी है तेरी
इस ‘दीये’ दी ये रोशनी है तेरी ।।फलं।।

क्यूँ न चढ़ाऊँ, में तो चढ़ाऊँगा अरघ,
न ऐसा वैसा कुछ अलग,
लिये कुछ कुछ बनक सुरग,
दी ये हर-खुशी है तेरी
दी ये जिन्दगी है तेरी
इस ‘दीये’ दी ये रोशनी है तेरी ।।अर्घ्यं।।

हाईकू
किससे छुपी करुणा गुरु जी,
हैं दूजे तरु ही

जयमाला

नैय्या हमारी बीच मॅंझधार में
बस यही एक अर्जी, तेरे दरबार में
‘के दो किनारे लगा
ए ! सन्त-सदलगा
‘के हमें, दो किनारे लगा

आशा की किरण तुम हो
मेरे तारण तरण तुम हो
पहली और आखरी,
हमारे लिये ‘के शरण तुम दो
सच आपके सिवा
ए ! सन्त-सदलगा
कोई की, न हमारा इस संसार में,
नैय्या हमारी बीच मॅंझधार में

हहा ! हा ! यहाँ, न किसने ठगा,
दो…गला, जमा…ना,
ये जमाना दोगला,
दूर तक न देख पा रहा हूॅं किनार मैं ।
नैय्या हमारी बीच मॅंझधार में
ए ! सन्त-सदलगा
कोई की, न हमारा इस संसार में,

।।जयमाला पूर्णार्घं।।

हाईकू
सहारा दे दो,
खिवैय्या !
डूबे नैय्या,
किनारा दे दो

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