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आचार्य श्री पूजन

गुरु-पाद पूजन – 773

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 
  • परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित

पूजन क्रंमाक 773

गुरु जी आप, पाँव-पाँव चल के,
आते ज्यों ही करीब, मेरे घर के
मेरा मनुआ, खो जाता है
जाने मुझे, क्या हो जाता है

गुरु जी आप, गाँव-गाँव चल के
आते ज्यों ही करीब, मिरे नगर के
मेरा मनुआ खो जाता है
जाने मुझे, क्या हो जाता है ।।स्थापना।।

आया न यूँ ही,
दर तेरे, गुरु जी,
कलशे जल से, भर के,
लाया न यूँ ही,
आते ज्यों ही करीब, मेरे घर के,
गुरु जी आप, पाँव-पाँव चल के,
मेरा मनुआ, खो जाता है
जाने मुझे, क्या हो जाता है ।।जलं।।

आया न यूँ ही,
दर तेरे, गुरु जी,
हट घट, चन्दन भर के,
लाया न यूँ ही,
आते ज्यों ही करीब, मेरे घर के,
गुरु जी आप, पाँव-पाँव चल के,
मेरा मनुआ, खो जाता है
जाने मुझे, क्या हो जाता है ।।चन्दनं।।

आया न यूँ ही,
दर तेरे, गुरु जी,
थाल, धाँ शाल भर के,
लाया न यूँ ही,
आते ज्यों ही करीब, मेरे घर के,
गुरु जी आप, पाँव-पाँव चल के,
मेरा मनुआ, खो जाता है
जाने मुझे, क्या हो जाता है ।।अक्षतं।।

आया न यूँ ही,
दर तेरे, गुरु जी,
पिटार, द्यु-क्यार भर के,
लाया न यूँ ही,
आते ज्यों ही करीब, मेरे घर के,
गुरु जी आप, पाँव-पाँव चल के,
मेरा मनुआ, खो जाता है
जाने मुझे, क्या हो जाता है ।।पुष्पं।।

आया न यूँ ही,
दर तेरे, गुरु जी,
अरु, थाली चरु भर के,
लाया न यूँ ही,
आते ज्यों ही करीब, मेरे घर के,
गुरु जी आप, पाँव-पाँव चल के,
मेरा मनुआ, खो जाता है
जाने मुझे, क्या हो जाता है ।।नैवेद्यं।।

आया न यूँ ही,
दर तेरे, गुरु जी,
घी दीपाली भर के,
लाया न यूँ ही,
आते ज्यों ही करीब, मेरे घर के,
गुरु जी आप, पाँव-पाँव चल के,
मेरा मनुआ, खो जाता है
जाने मुझे, क्या हो जाता है ।।दीपं।।

आया न यूँ ही,
दर तेरे, गुरु जी,
धूप घट नूप भर के,
लाया न यूँ ही,
आते ज्यों ही करीब, मेरे घर के,
गुरु जी आप, पाँव-पाँव चल के,
मेरा मनुआ, खो जाता है
जाने मुझे, क्या हो जाता है ।।धूपं।।

आया न यूँ ही,
दर तेरे, गुरु जी,
फल वन नन्दन भर के,
लाया न यूँ ही,
आते ज्यों ही करीब, मेरे घर के,
गुरु जी आप, पाँव-पाँव चल के,
मेरा मनुआ, खो जाता है
जाने मुझे, क्या हो जाता है ।।फलं।।

आया न यूँ ही,
दर तेरे, गुरु जी,
परात फलाद भर के,
लाया न यूँ ही,
आते ज्यों ही करीब, मेरे घर के,
गुरु जी आप, पाँव-पाँव चल के,
मेरा मनुआ, खो जाता है
जाने मुझे, क्या हो जाता है ।।अर्घ्यं।।

=हाईकू=
गुरु सुन लें अन्-कहा भी,
न करें अन्-सुना कभी

जयमाला

।। हैं सन्त स्वयं के जैसे ।।
अभिजात बाल वत् मन है ।
जल भिन्न कमल जीवन है ।।
वन चले, छोड़ धन पैसे ।
हैं सन्त स्वयं के जैसे ।।१।।

ना कहना कुछ, सब सहना ।
ना रहना टिक, नित बहना ।।
भुवि, कुछ-कुछ दरिया ऐसे ।
हैं सन्त स्वयं के जैसे ।।२।।

तर हाथ न हाथ करे हैं ।
हाथों पे हाथ घरे हैं ।।
वच अगम, कहूॅं गुण कैसे ।
हैं सन्त स्वयं के जैसे ।।३।।

।। जयमाला पूर्णार्घं ।।

=हाईकू=
लबालब दें कर जेब,
दुआओं से गुरुदेव

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