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आचार्य श्री पूजन

गुरु-पाद पूजन – 732

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 
  • परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित

पूजन क्रंमाक 732

हाईकू

समाँ भगवान्,
बाँटा करते गुरु मुफ्त मुस्कान ।।स्थापना।।

देर रात, न लागे आँख तुम,
सो आया दृग् नम ।।जलं।।

दिखे दृग् तीजी,
आप वैभव नंत,
भेंटूँ सो गन्ध ।।चन्दनं।।

नाक सिवा,
न दिखता कुछ तुम्हें,
सो भेंटूँ धाँ मैं ।।अक्षतं।।

‘पलक’
पल को उठाते तुम,
सो भेंटूँ कुसुम ।।पुष्पं।।

तोय दृग् गंग-जमुन धारा,
भेंटूँ सो चरु न्यारा ।।नैवेद्यं।।

दृग् कोर भींजी रहतीं तुम्हारी,
सो भेंटूँ दीपाली ।।दीपं।।

तोय-दृग् छाया रहे एक चिद्रूप,
सो भेंटूँ धूप ।।धूपं।।

चढ़ाऊँ भेले,
‘तोय-दृग्’
भीतर ही भीतर खेले ।।फलं।।

भेंटूँ अरघ,
समाये दिल-मुठ्ठी जो,
आप जग ।।अर्घ्यं।।

हाईकू

लगने पाये न खबर,
चित् चुरा लें गुरुवर

जयमाला

मेरे विधाता !
खूब आता है
आपको बखूब आता है

कर औरों को छाँव आना
भर गैरों के घाव आना
दुख विघाता !
मेरे विधाता !
खूब आता है
आपको बखूब आता है

खे औरों की नाव आना
खो गैरों का तनाव आना
सुख प्रदाता !
दुख विघाता !
मेरे विधाता !
खूब आता,
आपको बखूब आता

विथला मन-मुटाव आना
थमा गैरों को ठाव आना
अगम्य गाथा ।
सुख प्रदाता !
दुख विघाता !
मेरे विधाता !
खूब आता,
आपको बखूब आता

।। जयमाला पूर्णार्घं ।।

हाईकू

वहाँ,
गुरु जी सा कहाँ,
आयें यूँ ही न देव यहाँ

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