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आचार्य श्री पूजन

गुरु-पाद पूजन – 722

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 
  • परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित

पूजन क्रंमाक 722

=हाईकू=
सभी के दिल में गुरु महाराज, 
करते राज ।।स्थापना।।

चलते तुम ‘नौ-वधु’ से संभल,
सो भेंटूँ जल ।।जलं।।

भुलाया तुम ने वन-क्रन्दन,
सो भेंटूँ चन्दन ।।चन्दनं।।

चलाते
तुम चालते सत्पथ,
सो भेंटूँ अक्षत ।।अक्षतं।।

तुम्हें सबसे भाली लागे चुप,
सो भेंटूँ पहुप ।।पुष्पं।।

बढ़ाते जाते न सिर करज,
सो भेंटूँ नेवज ।।नैवेद्यं।।

न रुची स्वप्न भी तुम्हें धी-बक,
सो भेंटूँ दीपक ।।दीपं।।

साँझ साँझ तू ले नाप-डगर,
सो भेंटूँ अगर ।।धूपं।।

नापो, पाँव दो न तुम दल-दल,
सो भेंटूँ फल ।।फलं।।

चाह सुदूर तुम स्वर्ग-पवर्ग,
सो भेंटूँ अर्घ ।।अर्घ्यं।।

=हाईकू=
न जो जहां दो में,
मिला आप पास वो सुकूँ हमें

।। जयमाला ।।

और आंखों से नाता है ।
छोड़ तेरा मेरा,
क्या न सन्तों को आता है ।

सुना क्या ? तुंकारी किस्सा ।
तभी से किया नहीं गुस्सा ।।
लटकती सूंड जन्म अगला ।
सुना क्या ? झाड़ा मद पल्ला ।।
सुना क्या ? कल तिरंच नाते ।
छोड़ माया वन आ जाते ।।
धुने सिर, मले हाथ माखी ।
सुना क्या ? यम-दर तिसना की ।।
छोड़ फन्दा घेरा,
क्या न सन्तों को आता है ।
और आंखों से नाता है ।
छोड़ तेरा मेरा,
क्या न सन्तों को आता है ।।१।।

सुना क्या ? कौन पराया है ।
किसी का दिल न दुखाया है ।
प्राण धन क्या दिया सुनाई ।
तभी से चोरी बिसराई ।।
भरोसे-मन्द कहाँ झूठा ।
सुना क्या ? नेह झूठ छूटा ।।
सुना क्या ? भवद गहल श्वानी ।
ब्रह्म-चर, छोड़ मुकत रानी ।।
काल नरकेश्वर राजेश्वर ।
सुना क्या ? त्यागा आडम्बर ।।
छोड़ चेहरे चेहरा,
क्या न सन्तों को आता है ।
और आंखों से नाता है ।
छोड़ तेरा मेरा,
क्या न सन्तों को आता है ।।२।।

।। जयमाला पूर्णार्घं ।।

=हाईकू=
आपका साथ क्या पा गया,
स्वर्ग ही हाथ आ गया

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