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आचार्य श्री पूजन

गुरु-पाद पूजन – 709

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 
  • परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित

पूजन क्रंमाक 709

=हाईकू=
दुविधा मन,
छूमंतर,
छू पूजा गुरु-भगवन् ।।स्थापना।।

तीजे दृग् भींजे पाने,
हम लाये दृग्-जल चढ़ाने ।।जलं।।

गति-गति का बंध मिटाने,
लाये गंध चढ़ाने ।।चन्दनं।।

दीवाली अब ‘कि मनाने,
लाये धाँ शाली चढ़ाने ।।अक्षतं।।

दृग् सुर-तिय जय-श्री पाने,
लाये पुष्प चढ़ाने ।।पुष्पं।।

क्षुधा रोग से पीछा छुड़ाने,
लाये चरु चढ़ाने ।।नैवेद्यं।।

बने, जीवन-जीव बचाने,
लाये दीव चढ़ाने ।।दीपं।।

मत मण्डूक कूप सिराने,
लाये धूप चढ़ाने ।।धूपं।।

विरला मुक्ति फल पाने,
लाये श्रीफल चढ़ाने ।।फलं।।

मोक्ष पदवी अनर्घ्य पाने,
लाये अर्घ चढ़ाने ।।अर्घ्यं।।

=हाईकू=
अनूठे,
गुरु पाँवन अँगूठे की भक्ति
दे मुक्ति

।।जयमाला।।
मुझसे न छीन ले कोई तुझे
हमेशा ये बना रहता है डर मुझे

तुम मुझे यूँ ही मिल गये हो ना
वैसे हटता ढ़ेर माटी का
तब कहीं जाके मिलता सोना

मेरा पुण्य है घना
जो हुआ तुमसे मिलना
कब कहाँ, हाथ लगे सबके
कोहनूर वरना
मेरा पुण्य है घना
तुम मुझे यूँ ही मिल गये हो ना

मुझसे न छीन ले कोई तुझे
हमेशा ये बना रहता है डर मुझे

तुम मुझे यूँ ही मिल गये हो ना
वैसे हटता ढ़ेर माटी का
तब कहीं जाके मिलता सोना

था बेगाना, मैं पराया
जो तुमने मुझे अपनाया
मेरा पुण्य है घना
जो हुआ तुमसे मिलना
कब कहाँ, हाथ लगे सबके
कोहनूर वरना
मेरा पुण्य है घना
तुम मुझे यूँ ही मिल गये हो ना

मुझसे न छीन ले कोई तुझे
हमेशा ये बना रहता है डर मुझे

गैर था, था मैं अजनबी,
दी तुमने मुझे, जो जिन्दगी
मेरा पुण्य है घना
जो हुआ तुमसे मिलना
कब कहाँ, हाथ लगे सबके
कोहनूर वरना
मेरा पुण्य है घना
तुम मुझे यूँ ही मिल गये हो ना

मुझसे न छीन ले कोई तुझे
हमेशा ये बना रहता है डर मुझे
।।जयमाला पूर्णार्घं।।

=हाईकू=
नज़र तेरी ही हम ले,
संभले हर हमले

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