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आचार्य श्री पूजन

गुरु-पाद पूजन – 703

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 
  • परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित

पूजन क्रंमाक 703

=हाईकू =
मेरी कुटिया पर कीजिये कृपा,
अबकी दफा ।।स्थापना।।

आ दिखायेगा तू कभी तो झलक,
भेंटूँ उदक ।।जलं।।

आ छुडायेगा तू कभी तो बन्धन,
भेंटूँ चन्दन ।।चन्दनं।।

आयेगा तुझे कभी तो मेरा ध्यान,
भेंटूँ सो धान ।।अक्षतं।।

उठायेगा, तू कभी तो दृष्टि,
करूँ सो पुष्ष-वृष्टि ।।पुष्पं।।

भेंटूँ नेवज,
पाऊँगा तेरी कभी तो पद-रज ।।नैवेद्यं।।

तू उबारेगा मेरी कभी तो पोत,
सो भेंटूँ ज्योत ।।दीपं।।

करेगा मुझे तू कभी तो पसन्द,
भेंटूँ सुगंध ।।धूपं।।

भेंटूँ फल,
तू आयेगा मेरे घर, कभी तो चल ।।फलं।।

भेंटूँ अरघ,
तू जितायेगा मुझे कभी तो जग ।।अर्घ्यं।।

=हाईकू=
‘तरु’,
परिन्दे देख हों खुश,
नेक बन्दे श्री गुरु

।।जयमाला।।
तेरे पावों का परस,
करके
तेरा आँखों से दरश
जो था सपना
हुआ अपना

जो था सपना
सितारों की दुनियाँ को छू आने का
‘कि सारी ही दुनियाँ में छा जाने का
हुआ अपना

तेरे पावों का परस,
करके
तेरा आँखों से दरश
जो था सपना
हुआ अपना

जो था सपना
बाहों में सारा जहान भर पाने का
निगाहों में ये आसमान रख लाने का
हुआ अपना

तेरे पावों का परस,
करके
तेरा आँखों से दरश
जो था सपना
हुआ अपना

जो था सपना
कोकिल सा दिल सबका जीत लाने का
वो, खो जिसमें दिल सबका, गीत गाने का
हुआ अपना

तेरे पावों का परस,
करके
तेरा आँखों से दरश
जो था सपना
हुआ अपना
जो था सपना
।। जयमाला पूर्णार्घं ।।

=हाईकू=
मुफ्त में देते बना काम बिगडे,
हो नादां ‘बड़े’

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