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आचार्य श्री पूजन

गुरु-पाद पूजन – 678

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 
  • परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित

पूजन क्रंमाक 678

=हाईकू=
सिन्धु बेकार ही,
विद्या सिन्धु तर रहे तार-भी ।।स्थापना।।

कर सकने सफल अखीर,
मैं भेंटूँ दृग्-नीर ।।जलं।।

कर सकने ‘भी’ अभिनन्दन,
मैं भेंटूँ चन्दन ।।चन्दनं।।

कर सकने निंदक स्वागत,
मैं भेंटूँ अक्षत ।।अक्षतं।।

कर सकने वसुधा कुटुम,
मैं भेंटूँ कुसुम ।।पुष्पं।।

कर सकने मृण चिन्मै भेद,
मैं भेंटूँ नैवेद ।।नैवेद्यं।।

कर सकने कण्ठस्थ पोथिंयाँ,
मैं भेंटूँ ज्योतिंयाँ ।।दीपं।।

कर सकने ‘कर’ निजानन्द,
मैं भेंटूँ सुगंध ।।धूपं।।

कर सकने प्रश्न जन्म हल,
मैं भेंटूँ श्री फल ।।फलं।।

कर सकने किनारे से अघ,
मैं भेंटूँ अरघ ।।अर्घं।।

=हाईकू=
बनाया,
रंग नील कमल
‘गुरु ने’
जो लिखाया

जयमाला

इक वही किस्मत वाला है
बना अपना लिया
थमा सपना दिया
गुरु जी ने जिसे, अपना लिया
काली कराली
दुनिया रात अंधियारी
वह एक ध्रुव उजियाला है
वह बड़ी किस्मत वाला है

सहज बना दिया
सनेह घना दिया
गुरु जी ने जिसे, अपना लिया
वह एक बहती धारा है
काली कराली
दुनिया रात अंधियारी
यह इक ध्रुव उजियाला है
वह बड़ी किस्मत वाला है
इक वही किस्मत वाला है

नाहिं मना किया
सुराही बना दिया
वह एक हृदय विशाला है
काली कराली
दुनिया रात अंधियारी
यह इक ध्रुव उजियाला है
वह बड़ी किस्मत वाला है
।।जयमाला पूर्णार्घं।।

=हाईकू=
विनन्ति नत मस्तक,
भिजा दृष्टि दो मुझ तक

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