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आचार्य श्री पूजन

गुरु-पाद पूजन – 676

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 
  • परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित

पूजन क्रंमाक 676

=हाईकू=
सिर्फ इन्दु के सिन्धु,
विद्या-सिन्धु न किन-के बन्धु ।।स्थापना।।

पाने निजात्म एक झलक,
आये,
लाये उदक ।।जलं।।

करने गुण अभिनन्दन,
आये,
लाये चन्दन ।।चन्दनं।।

होना सहज ओ निराकुल,
आये,
लाये तण्डुल ।।अक्षतं।।

बने जीवन कि कल्प-द्रुम,
आये,
लाये कुसुम ।।पुष्पं।।

जगा सकने धी-भी समझ,
आये,
लाये नेवज ।।नैवेद्यं।।

पाने भौ मानौ वैभवशाली,
आये,
लाये दीवाली ।।दीपं।।

हो सकें वायु से ‘कि निसंग,
आये,
लाये सुगंध ।।धूपं।।

पायें ‘कि छाँव आप आँचल,
आये,
लाये श्री फल ।।फलं।।

पाने तीसरी-भीतरी ‘अख’
आये,
लाये अरघ ।।अर्घ्यं।।

=हाईकू=
हँसी किसी की उड़ानी,
गुरु-मति से अनजानी

जयमाला
गुरु जी मेरे हैं
सिर्फ और सिर्फ
गुरु जी मेरे हैं

भ्रमर से तितली
यही,
कह रही,
मगर से मछली
गुरु जी मेरे हैं
सिर्फ और सिर्फ
गुरु जी मेरे हैं

बदली ये पगली
यही,
कह रही
बादल से बिजली
गुरु जी मेरे हैं
सिर्फ और सिर्फ
गुरु जी मेरे हैं

धातु की प्रतिमा ढ़ली
यही,
कह रही
हरेक प्रतिभा थली
गुरु जी मेरे हैं
सिर्फ और सिर्फ
गुरु जी मेरे हैं

भ्रमर से तितली
यही,
कह रही,
मगर से मछली
गुरु जी मेरे हैं
सिर्फ और सिर्फ
गुरु जी मेरे हैं
।। जयमाला पूर्णार्घं ।।

=हाईकू=
मेरी भावना
कभी, छूटे पल भी,
तेरी छाँव ना

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