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आचार्य श्री पूजन

गुरु-पाद पूजन – 644

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 
  • परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित

पूजन क्रंमाक 644

=हाईकू=
सुना,
तुम्हें भौ पार लगाना भाये,
शरण आये ।।स्थापना।।

लाया भेंट में, दृग्-जल यह,
पाने नई सुबह ।।जलं।।

अपना लो गंध झारी,
दो उड़ा पतंग म्हारी ।।चन्दनं।।

स्वीकार थाल धाँ न्यारे,
डाल झोली दो चाँद-तारे ।।अक्षतं।।

भेंटने प्रसूँ लाये,
न अकेले ही अश्रु भी आये ।।पुष्पं।।

चरु लाया,
न अकेले आया, गला भी भर आया ।।नैवेद्यं।।

लाये प्रदीव चढ़ाने,
कुछ और करीब आने ।।दीपं।।

लग चाले ‘कि जन्नत हाथ,
भेंटूॅं सुगंध ख्यात ।।धूपं।।

पाने आपकी प्रीत,
श्री फल लाये, आये विनीत ।।फलं।।

भेंटूॅं अर्घ,
‘जि छोटे बाबा जी,
चिर-स्वप्न बा बाजी ।।अर्घ्यं।।

=हाईकू=
आ-आप पद निकट,
लगा, छुआ भौ-सिन्ध-तट

जयमाला
वन्दन, वन्दन
धन-धन, धन-धन

शामो-सुबहा
ग्राम सदलगा की
आबो-हवा
धन-धन, धन-धन
बाल-विद्याधर जो गई पा
वन्दन, वन्दन
धन-धन, धन-धन

सरीखी दुवा
ग्राम सदलगा की
मीठी जुबां
धन-धन, धन-धन
बाल-विद्याधर जो गई पा
वन्दन, वन्दन
धन-धन, धन-धन

बाल गोपाला सभा
ग्राम सदलगा की
गुशाला, पाठशाला जुदा
धन-धन धन-धन
बाल-विद्याधर जो गई पा
वन्दन, वन्दन
धन-धन, धन-धन

शामो-सुबहा
ग्राम सदलगा की
आबो-हवा
धन-धन, धन-धन
बाल-विद्याधर जो गई पा
वन्दन, वन्दन
धन-धन, धन-धन
।।जयमाला पूर्णार्घं।।

=हाईकू=
यही कहना,
किरपा बरसाते यूँ ही रहना

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