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आचार्य श्री पूजन

गुरु-पाद पूजन – 639

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 
  • परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित

पूजन क्रंमाक 639

=हाईकू=
विनीत,
होते गुरुदेव ‘रब-से सबके मीत ।।स्थापना।।

रख सकने मैत्री सब से,
भेंटूँ जल कलशे ।।जलं।।

रख सकने शिशु नौ-जात मन,
भेंटूँ चन्दन ।।चन्दनं।।

रख सकने निंदक आस-पास,
भेंटूँ धाँ-राश ।।अक्षतं।।

रख सकने होंठो पे आप-जप,
भेंटूँ पहुप ।।पुष्पं।।

रख सकने ‘मृणमै-चिन्मै’ भेद,
भेंटूँ नैवेद ।।नैवेद्यं।।

रख सकने नासा नजरिया,
मैं भेंटूँ घी-दीया ।।दीपं।।

रख सकने नेह-निस्पृह,
भेंटूँ सुवास यह ।।धूपं।।

रख सकने भार उतार,
भेंटूँ फल पिटार ।।फलं।।

रख सकने फूॅंक-फूॅंक के पग,
भेंटूँ अरघ ।।अर्घ्यं।।

=हाईकू=
गुरु जी
दूजी माँ नजर,
सभी की रक्खें खबर

।।जयमाला।।

।। सन्त ये ऐसे कैसे हैं ।।
पोंछते मिलते हैं आंसू ।
धकाते बन पाछी वायू ।
सन्त खुद अपने जैसे हैं ।।१।।

धूप खा, खड़े तान छाते ।
बदल पत्थर फल बरसाते ।।
कुछ कुछ तरुवर ऐसे हैं ।
सन्त खुद अपने जैसे हैं ।।२।।

दाग़ धब्बे धो डालें हैं ।
तृप्त कर देने वाले हैं ।।
कुछ कुछ दरिया ऐसे हैं ।
सन्त खुद अपने जैसे हैं ।।३।।

।। जयमाला पूर्णार्घं ।।

=हाईकू=
यही विनन्ति,
पा जाऊँ आप भाँति,
कच्छप-मति

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