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आचार्य श्री पूजन

गुरु-पाद पूजन – 633

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 
  • परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित

पूजन क्रंमाक 633

=हाईकू=
न मिली,
छानी गली-गली,
तुझ सी दरियादिली ।।स्थापना।।

लाया नैनन-जल मैं,
छोड़ देना न भँवर में ।।जलं।।

आया गंध ले कर मैं,
छोड़ देना न भँवर में ।।चन्दनं।।

लाया धाँ थाल भर मैं,
छोड़ देना न भँवर में ।।अक्षतं।।

लाया पुष्प ‘द्यु-तरु’ मैं,
छोड़ देना न भँवर में ।।पुष्पं।।

लाया सरस चरु मैं,
छोड़ देना न भँवर में ।।नैवेद्यं।।

लाया दीप घी-गिर मैं,
छोड़ देना न भँवर में ।।दीपं।।

लाया ‘सुंगध-अर’ मैं,
छोड़ देना न भँवर में ।।धूपं।।

आया लेके श्री फल मैं,
छोड़ देना न भँवर में ।।फलं।।

लाया अर्घ ‘सा-दर’ मैं,
छोड़ देना न भँवर में ।।अर्घ्यं।।

=हाईकू=
कहते ही जै-गुरुदेव
हो चाले वजनी-जेब

जयमाला

छूते ही रज-चरण तेरी
उलझन मेरी
छू हुई
छूते ही रज-चरण तेरी
है जादुई
रज-चरण तेरी
उलझन मेरी
छू हुई

लगा वक्त कितना
तो पलक झपकने में
बादल के विघटने में
लगा वक्त जितना
लगा वक्त उतना

छूते ही रज-चरण तेरी
उलझन मेरी
छू हुई
छूते ही रज-चरण तेरी
है जादुई
रज-चरण तेरी
उलझन मेरी
छू हुई

लगा वक्त कितना
तो इन्दु लख सिन्धु उमड़ने में,
कमल-दल, जल-बिन्दु लुड़कने में
लगा वक्त जितना
लगा वक्त उतना

छूते ही रज-चरण तेरी
उलझन मेरी
छू हुई
छूते ही रज-चरण तेरी
है जादुई
रज-चरण तेरी
उलझन मेरी
छू हुई
।।जयमाला पूर्णार्घं।।

=हाईकू=
एक अरज म्हारी,
छू सकूँ पांव-रज तुम्हारी

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