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आचार्य श्री पूजन

गुरु-पाद पूजन – 618

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 
  • परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित

पूजन क्रंमाक 618

हाईकू

बाँधा न,
गुरु जी ने कभी,
किसी को भी,
दी बाधा न ।।स्थापना।।

जल ही नहीं,
भाव निर्मल लाये,
आँसु भी आये ।।जलं।।

गंध ही नहीं,
सद्भाव छन्द लाये,
आँसु भी आये ।।चन्दनं।।

सुधाँ ही नहीं,
भाव त्रिसन्ध्या लाये,
आँसु भी आये ।।अक्षतं।।

गुल ही नहीं,
भाव मंजुल लाये,
आँसु भी लाये ।।पुष्पं।।

चरु ही नहीं,
स्वभाव तरु लाये,
आँसु भी आये ।।नैवेद्यं।।

दिया ही नहीं,
भाव बढ़िया लाये,
आँसु भी आये ।।दीपं।।

धूप ही नहीं,
भाव अनूप लाये,
आँसु भी आये ।।धूपं।।

फल ही नहीं,
भाव निच्छल लाये,
आँसु भी आये ।।फलं।।

अर्घ ही नहीं,
भाव अनर्घ लाये,
आँसु भी लाये ।।अर्घ्यं।।

हाईकू
बनाते पीठ ठोंकने योग,
गुरु जी पीठ-ठोंक

जयमाला

मृग पाथर समझ खुजावत खाज ।
जय जयत जयत, जय जय मुनिराज ।।

वन जोवन सुन शिव तिय आवाज ।
सेवक न किसी के खुद सरताज ।
कल चिन्ता विसर सम्हारत आज ।।
मृग पाथर समझ खुजावत खाज ।
जय जयत जयत, जय जय मुनिराज ।।१।।

मां प्रवचन समित गुप्ति वस नाज ।
तरु-मूल अभ्र आतप इक काज ।।
पड़ दृष्ट अष्ट अरकुल सर गाज ।
कुछ उदर बड़ा सा राखत लाज ।।
मृग पाथर समझ खुजावत खाज ।
जय जयत जयत, जय जय मुनिराज ।।२।।

कलि कोई एक गरीब नवाज ।
भवि ! भव सागर उत्तरण जहाज ।।
मन चाह निराकुल-पुर साम्राज ।
बह धारा विधि सुख साधत साज ।।
मृग पाथर समझ खुजावत खाज ।
जय जयत जयत, जय जय मुनिराज ।।३।।

।।जयमाला पूर्णार्घं।।

हाईकू

ले आहट,
‘कि चाले गुरु आगे दे मुस्कुराहट

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