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आचार्य श्री पूजन

गुरु-पाद पूजन – 611

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 
  • परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित

पूजन क्रंमाक 611

=हाईकू=

मुझे खुद से न दूर करना,
ए ! नूर करुणा ।।स्थापना।।

सुलझा भी दो उलझन,
दृग्-जल करूँ अर्पण ।।जलं।।

चाह ले एक स्वानुभवन,
चन्दन करूँ अर्पण ।।चन्दनं।।

साधूॅं अब ‘कि सु…मरण,
तण्डुल करूँ अर्पण ।।अक्षतं।।

चाह ले जित-चितवन,
ये पुष्प करूँ अर्पण ।।पुष्पं।।

मेंटने रोग क्षुध् वेदन,
नैवेद्य करूँ अर्पण ।।नैवेद्यं।।

खोलने तीजे लोचन,
घी का दीया करूँ अर्पण ।।दीपं।।

करने ढीला कर्म बन्धन,
धूप करूँ अर्पण ।।धूपं।।

पाऊँ ‘कि पाद-प्रक्षालन,
श्री फल करुँ अर्पण ।।फलं।।

थम सके ‘कि दौड़-हिरण,
अर्घ्य करूँ अर्पण ।।अर्घ्यं।।

=हाईकू=
ताने औरों के लिए छाता श्री गुरु
और ही तरु

जयमाला

जन्म दिया जिसने वो इक माँ
और माँ दूजी गुरु जी

जिसने दिया जन्म न भले
सँभाला पै, हम जब भी फिसले
भुला के शिकवे-गिले

जन्म दिया जिसने वो इक माँ
और माँ दूजी गुरु जी

जिसने दिया जन्म न भले
हँसाया पै आँसु जब भी निकले
था अजनबी लगाया गले
भुला के शिकवे-गिले

जन्म दिया जिसने वो इक माँ
और माँ दूजी गुरु जी

जिसने दिया जन्म न भले
धकाया जो हुये दहले से नहले
अखीर, मेरे विश्वास पहले
था अजनबी लगाया गले
भुला के शिकवे-गिले

जन्म दिया जिसने वो इक माँ
और माँ दूजी गुरु जी

जिसने दिया जन्म न भले
सँभाला पै, हम जब भी फिसले
भुला के शिकवे-गिले

जन्म दिया जिसने वो इक माँ
और माँ दूजी गुरु जी
।। जयमाला पूर्णार्घं ।।

=हाईकू=
नरम दिल,
‘लो बना अपने सा’
रहम दिल

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