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आचार्य श्री पूजन

गुरु-पाद पूजन – 604

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 
  • परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित

पूजन क्रंमाक 604

हाईकू
न बोलने पे भी,
लगते अच्छे हो, मुझे तो तुम्हीं ।।स्थापना।।

ये जल अरु मुझे एक बार,
लो कर स्वीकार ।।जलं।।

ये चन्दन रु मुझे एक बार,
लो बस निहार ।।चन्दनं।।

ये धां रु मुझे एक बार
संसार से लो उबार ।।अक्षतं।।

ये पुष्प, अरु मुझे एक बार,
दो दृग्-उपहार ।।पुष्पं।।

ये नैवेद्य रु मुझे एक बार,
लो लगा ऊ पार ।। नैवेद्यं।।

ये दीप, अरु मुझे एक बार,
दो भेंट विहार ।।दीपं।।

ये धूप, अरु मुझे एक बार,
दो भेंट उद्धार ।।धूपं।।

ये श्री फल रु मुझे एक बार,
दो भेंट आहार ।।फलं।।

ये अर्घ, अरु मुझे एक बार,
दे दो मुस्कां न्यार ।।अर्घ्यं।।

हाईकू
काफी है गुरु नाम,
लेते चालो, ले आश मुकाम

जयमाला

‘जि गुरु जी दो बरसा कृपा
है तकदीर कुछ खपा-खपा
‘जि गुरु जी दो बरसा कृपा

घर ने आपका न पाया दीदार है
गुजरा इक जमाना
अय ! रहनुमा
गुजरा इक जमाना
हमने आपका न कराया आहार है

और आपसे है भी कहाँ छुपा,
है तकदीर कुछ खपा-खपा
‘जि गुरु जी दो बरसा कृपा

परात-कलशी न पांव पाई पखार है
गुजरी इक उमर
अय ! पाक नज़र
गुजरी इक उमर
चन्दन चौकी के लिये आपका इंतजार है

और आपसे है भी कहाँ छुपा,
है तकदीर कुछ खपा-खपा
‘जि गुरु जी दो बरसा कृपा

घर ने आपका न पाया दीदार है
गुजरा इक जमाना
अय ! रहनुमा
गुजरा इक जमाना
हमने आपका न कराया आहार है

और आपसे है भी कहाँ छुपा,
है तकदीर कुछ खपा-खपा
‘जि गुरु जी दो बरसा कृपा
।।जयमाला पूर्णार्घं।।

हाईकू
कीजिये खुद-सा,
‘जि गुरु जी करे परेशाँ गुस्सा

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