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आचार्य श्री पूजन

गुरु-पाद पूजन – 500

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 
  • परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित

पूजन क्रंमाक 500

=हाईकू=
रुलाती तेरी याद
याद मेरी क्या तुझे भी आती ।।स्थापना।।

कीजिये और निकट,
दास और ये जल घट ।।जलं।।

कीजिये और निकट,
दास और ये गंध घट ।।चन्दनं।।

कीजिये और समीप,
दास और ये धाँ-भा-सीप ।।अक्षतं।।

कीजिये और पास,
दास और ये पुष्प सुवास ।।पुष्पं।।

कीजिये और पास,
दास और ये नैवेद्य खास ।।नैवेद्यं।।

कीजिये थोड़ा सा और करीब,
दास और ये दीव ।।दीपं।।

कीजिये और निकट,
दास और ये धूप घट ।।धूपं।।

कीजिये और अजीज,
दास और ये तुच्छ चीज ।।फलं।।

कीजिये और पास,
दास और ये दरब राश ।।अर्घ्यं।।

=हाईकू=
रखते भाव-वत्सल सब-से,
‘श्री गुरु’ रब-से

।।जयमाला।।

था इस काबिल न मैं
मिल गये जो तुम हमें
तो मिल गया साहिल हमें
था इस काबिल न मैं

जाने कब दे जाती धोखा
थी जर्जर-सी नौका
मेरे जीवन में आ
दिया मेरा जीवन बना तुमने अनोखा
थी जर्जर-सी नौका

मंझधार दिखाये रंग अपना
बिजुरी पानी अंधियार घना
जाने कब दे जाती धोखा
थी जर्जर-सी नौका
मेरे जीवन में आ
दिया मेरा जीवन बना तुमने अनोखा
थी जर्जर-सी नौका

तेज तूफानों में उलझी
अब बुझी ‘कि लौं तब बुझी
जाने कब दे जाती धोखा
थी जर्जर-सी नौका
मेरे जीवन में आ
दिया मेरा जीवन बना तुमने अनोखा
थी जर्जर-सी नौका

था इस काबिल न मैं
मिल गये जो तुम हमें
तो मिल गया साहिल हमें
था इस काबिल न मैं
।।जयमाला पूर्णार्घं।।

=हाईकू=
समझ लेना मुआ मुझे,
जरा दूँ जो धोखा तुझे

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