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आचार्य श्री पूजन

गुरु-पाद पूजन – 496

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 
  • परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित

पूजन क्रंमाक 496

*हाईकू*
जोड़ना मुझे, ‘तुझसे’ पक्का रिश्ता
‘दे-बता’ रस्ता ।।स्थापना।।

यूँ ही आशीष पाने रोजाना,
हुआ ले जल आना ।।जलं।।

यूँ किरपा पाने रोजाना,
हुआ चन्दन लाना ।।चन्दनं।।

यूँ करुणा पाने रोजाना,
हुआ अक्षत लाना ।।अक्षतं।।

यूँ ही शरणा पाने रोजाना,
हुआ ले पुष्प आना ।।पुष्पं।।

यूँ ही मुस्कान पाने रोजाना,
हुआ नैवेद्य लाना ।।नैवेद्यं।।

यूँ ही आँगन पाने रोजाना,
हुआ ले दीप आना ।।दीपं।।

यूँ ही देशना पाने रोजाना,
हुआ ले धूप आना ।।धूपं।।

यूँ ही पड़गा पाने रोजाना,
हुआ श्री फल लाना ।।फलं।।

यूँ ही हर्षाश्रु पाने रोजाना,
हुआ ले अर्घ आना  ।।अर्घ्यं।।

*हाईकू*
पुकारें कह के साँवला भी ‘लाल’,
‘माएँ’ कमाल

।। जयमाला।।

कहती जमीं
कहता यहीं आसमाँ
तुम हम
हैं जिस्म दो, इक दिलो-जाँ
जी गुरुजी

चहचहाती चिड़ियों ने
भँवरों ने, तितलियों ने
और क्या ? यही तो कहा
तुम हम
हैं जिस्म दो, इक दिलो-जाँ
जी गुरुजी

मुस्कुराती कलियों ने
मयूरों ने, बदलियों ने
और क्या ? यही तो कहा
हो करके इक जुबाँ

डबडबाती अँखियों ने
यादों ने, हिचकियों ने
और क्या ? यही तो कहा
हो करके इक जुबाँ
तुम हम
हैं जिस्म दो, इक दिलो-जाँ
जी गुरुजी
कहती जमीं
कहता यहीं आसमाँ

।। जयमाला पूर्णार्घं ।।

*हाईकू*
दूजे पाले में,
‘ले लो हमें’
अंधेरे से, उजाले में

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