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आचार्य श्री पूजन

गुरु-पाद पूजन – 470

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 
  • परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित

पूजन क्रंमाक 470

-हाईकू-
दे ‘हर-बच्चे-चेहरे’ दें मुस्कान,
गुरु भगवान् ।।स्थापना।।

सौधर्म वाला उदक न मिला,
लो यही अपना ।।जलं।।

चन्दन ‘वाला’ चन्दन न मिला,
लो यही अपना ।।चन्दनं।।

हरेक दाना अक्षत न मिला,
लो यही अपना ।।अक्षतं।।

मेंढक वाला सुमन न मिला,
लो यही अपना ।।पुष्पं।।

मीरा सा स्वर-व्यंजन न मिला,
लो यही अपना ।।नैवेद्यं।।

गो-घृत वाला दीपक न मिला,
लो यही अपना ।।दीपं।।

निराला घट सुगंध न मिला,
लो यही अपना ।।धूपं।।

दक्षिण वाला श्री फल न मिला,
लो यही अपना ।।फलं।।

सोने सुहाग अरघ न मिला,
लो यही अपना ।।अर्घ्यं।।

-हाईकू-
‘गुरु निकट’,
जाते टल, ‘संकट’ चिर-अटल

जयमाला

मैं आता हूँ बड़ी दूर से
चलकर,
पल-भर
बोल ही लिया करो तुम मुझसे
मैं आता हूँ बड़ी दूर से
लिया करो, न कुछ दिया करो
नजर उठा लिया करो
बस जर्रा मुस्करा दिया करो
लिया करो न कुछ दिया करो
अय ! मेरे गुरुवर
पल भर
बोल ही लिया करो तुम मुझसे,
मैं आता हूँ बड़ी दूर से
चलकर,
पल भर

लिया करो न कुछ दिया करो
चरण छुवा लिया करो
बस जर्रा मुस्करा दिया करो
लिया करो न कुछ दिया करो
अय ! मेरे गुरुवर
पल भर
बोल ही लिया करो तुम मुझसे,
मैं आता हूँ बड़ी दूर से
चलकर,
पल भर

लिया करो, न कुछ दिया करो
पढ़ स्वस्ति दिया करो
लिया करो न कुछ दिया करो
बस जर्रा मुस्करा दिया करो

लिया करो न कुछ दिया करो
अय ! मेरे गुरुवर
पल भर
बोल ही लिया करो तुम मुझसे,
मैं आता हूँ बड़ी दूर से
चलकर,
पल भर
।।जयमाला पूर्णार्घं ।।

-हाईकू-
दुखिया भी,
आ…गुरु-द्वार से, जाये, ले खुशियाँ ही

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