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आचार्य श्री पूजन

गुरु-पाद पूजन – 460

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 
  • परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित

पूजन क्रंमाक 460

=हाईकू=
पा…पा दृग्-नीर,
हुई कोरा-कागज आपकी तस्वीर ।।स्थापना।।

फल चाहा न जिन्होंने,
भेंटूँ जल उन्हीं सा होने ।।जलं।।

द्वन्द चाहा न जिन्होंने,
भेंटूँ गंध उन्हीं सा होने ।।चन्दनं।।

दुध्याँ चाहा न जिन्होंने,
भेंटूँ सुधाँ उन्हीं सा होने ।।अक्षतं।।

रस चाहा न जिन्होंने,
भेंटूँ पुष्प उन्हीं सा होने ।।पुष्पं।।

‘जि तू चाहा न जिन्होंने,
भेंटूँ चरु उन्हीं सा होने ।।नैवेद्यं।।

बुरा चाहा न जिन्होंने,
भेंटूँ दिया उन्हीं सा होने ।।दीपं।।

‘रे कुप् चाहा न जिन्होंने,
भेंटूँ धूप उन्हीं सा होने ।।धूपं।।

छल चाहा न जिन्होंने,
भेंटूँ फल उन्हीं सा होने ।।फलं।।

अघ चाहा न जिन्होंने,
भेंटूँ अर्घ उन्हीं सा होने ।।अर्घ्यं।।

=हाईकू=
आप का निरा कुल है,
और कौन निराकुल है

जयमाला

दे जरा मुस्कान दीजिये
इतना कर एहसान दीजिये
गुरुवर,
अय ! गुरुवर
अपना कर
मुझे अपना बना कर
इतना कर एहसान दीजिये
दे जरा मुस्कान दीजिये

तेरे चरण सरोज
‘कि पखार पाऊँ रोज
ऐसा दे वरदान दीजिये
इतना कर अहसान दीजिये
गुरुवर,
अय ! गुरुवर
करुणा कर
अपना कर
मुझे अपना बना कर
इतना कर एहसान दीजिये
दे जरा मुस्कान दीजिये

कहीं आ रही न नजर
मुझे दूर दूर तक डगर
नजर पैरों के निशान कीजिये
इतना कर अहसान दीजिये
गुरुवर,
अय ! गुरुवर
दयासागर
करुणा कर
अपना कर
मुझे अपना बना कर
इतना कर एहसान दीजिये
दे जरा मुस्कान दीजिये
।।जयमाला पूर्णार्घं ।।

=हाईकू=
हरेक शख्स,
चाहे खींचना, आँखों में आप-अक्स

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