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आचार्य श्री पूजन

गुरु-पाद पूजन – 363

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 
  • परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित

पूजन क्रंमाक 363

हाईकू

ले तकलीफ लेते,
‘जि गुरु जी दे रिलीफ देते ।।स्थापना।।

छूना गगना,
जल ये अपना,
दो पूर सपना ।।जलं।।

सूना अँगना,
गंध ये अपना,
दो पूर सपना ।।चन्दनं।।

सुधा चखना,
सुधाँ ये अपना,
दो पूर अपना ।।अक्षतं।।

कुप् निपटना,
पुष्प ये अपना,
दो पूर अपना ।।पुष्पं।।

क्षुध् विघटना,
चरु ये अपना,
दो पूर सपना ।।नैवेद्यं।।

मोह हनना,
दीप ये अपना,
दो पूर सपना ।।दीपं।।

नूप बनना, 
धूप ये अपना,
दो पूर सपना ।।धूपं।।

भव तरना,
फल ये अपना,
दो पूर सपना ।।फलं।।

तट लगना,
अर्घ्य ये अपना,
दो पूर सपना ।।अर्घ्यं।।

हाईकू

देखा गुरु जी ने,
बिना चढ़े जीने, ऊपर दिखा

जयमाला

रंगा लो रंग अपने
लगा लो संग अपने
है तन्हा तन्हा
ये बालक नन्हा
अमावसी,
है निशी,
और ये ऊपर से आंधी तूफां
है तन्हा तन्हा
ये बालक नन्हा
रंगा लो रंग अपने
लगा लो संग अपने
मँझधार हम
पतवार गुम
अमावसी,
है निशी,
और ये ऊपर से आंधी तूफां
है तन्हा तन्हा
ये बालक नन्हा
रंगा लो रंग अपने
लगा लो संग अपने

बिजुरी दहाड़,
मूसलाधार,
मँझधार हम
पतवार गुम
अमावसी,
है निशी,
और ये ऊपर से आंधी तूफां
है तन्हा तन्हा
ये बालक नन्हा
रंगा लो रंग अपने
लगा लो संग अपने
।।जयमाला पूर्णार्घं।।

हाईकू

सिवाय आप एक मुस्कान,
अर न अरमान

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