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आचार्य श्री पूजन

गुरु-पाद पूजन – 344

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 
  • परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
    पूजन क्रंमाक 344

    हाईकू

    आये सेवा में,
    ओ !
    ‘अपना’ सेवक लो बना हमें ।।स्थापना।।

    जल से भरा, बस यह घड़ा,
    लो अपना जरा ।।जलं।।

    अरमाँ मिरा, बस ये चन्दन,
    लो अपना जरा ।।चन्दनं।।

    सहारा तिरा, बस ये अक्षत,
    लो अपना जरा ।।अक्षतं।।

    तेरा आसरा, बस यह पुष्प,
    लो अपना जरा ।।पुष्पं।।

    नमन निरा, बस ये नैवेद्य,
    लो अपना जरा ।।नैवेद्यं।।

    श्रद्धाँ गहरा, बस ये दीप,
    लो अपना जरा ।।दीपं।।

    करुणा झिरा, बस यह धूप,
    लो अपना जरा ।।धूपं।।

    कृपया त्वरा, बस ये श्री फल,
    लो अपना जरा ।।फलं।।

    सपना-मिरा, बस यह अर्घ्य,
    लो अपना जरा ।।अर्घ्यं।।

    हाईकू

    फेरे ‘मनके’ गुरु नाम,
    बन चाले ‘कि काम

    जयमाला

    उसके पीछे जमाना,
    जो गुरु जी के पीछे दीवाना,
    जागते सोते, देखे जो सपने गुरु के ।
    भाग-भाग आये, पास अपने गुरु के ॥
    बहुत उससे पीछे परवाना ।
    जो गुरु जी के पीछे दीवाना,
    उसके पीछे जमाना,

    गुरु के पखारे पाँव आँसुओं से।
    भँवर बीच डारे नाव गुरु भरोसे ।
    जागते सोते, देखे जो सपने गुरु के ।
    भाग-भाग आये, पास अपने गुरु के ॥
    बहुत उससे पीछे परवाना ।
    जो गुरु जी के पीछे दीवाना,
    उसके पीछे जमाना,

    खतम जिसका गुरु से जीवन शुरु है ।
    खुदा से भी बढ़कर जिसको गुरु है ।
    जागते सोते, देखे जो सपने गुरु के ।
    भाग-भाग आये, पास अपने गुरु के ॥
    बहुत उससे पीछे परवाना ।
    जो गुरु जी के पीछे दीवाना,
    उसके पीछे जमाना,
    ।।जयमाला पूर्णार्घं।।

    =हाईकू=

    चाँदी न सोना,
    ‘चाहिये’
    बस पास-पाँवन कोना

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