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आचार्य श्री पूजन

गुरु-पाद पूजन – 328

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 
  • परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित

पूजन क्रंमाक 328

“हाईकू”
सुन, आया,
दें बना बिगड़े काम
आप निर्दाम ।।स्थापना।।

मुझ गौतम के वीर,
नीर भेंटूँ, बनने नीर ।।जलं।।

मुझ गौतम के वीर,
गंध भेंटूँ, मेंटो भौ-पीर ।।चन्दनं।।

मुझ गौतम के वीर,
सुधाँ भेंटूँ, बनने क्षीर ।।अक्षतं।।

मुझ गौतम के वीर,
पुष्प भेंटूँ, कीजो गम्भीर ।।पुष्पं।।

मुझ गौतम के वीर,
चरु भेंटूँ, मेंटो क्षुध् पीर ।।नैवेद्यं।।

मुझ गौतम के वीर,
दीप भेंटूँ, भिंटाओ माँ-गीर् ।।दीपं।।

मुझ गौतम के वीर,
धूप भेंटूँ, लिये दृग् नीर ।।धूपं।।

मुझ गौतम के वीर,
फल भेंटूँ, भिंटाओ तीर ।।फलं।।

मुझ गौतम के वीर,
अर्घ्य भेंटूँ, हित अखीर ।।अर्घ्यं।।

“हाईकू”
भरे तितली में रंग,
मेरी भी दें उड़ा पतंग

।। जयमाला।।

मिल जाता सुकूँ,
मेरे नयन
तेरे चरण
लेते जो छू
दिल पाता खुशबू
मिल जाता सुकूँ,

भले ही पल पलक
भाँति बिजली चमक
ज्यों मुस्कुराये तू,
मिल जाता सुकूँ,
मेरे नयन
तेरे चरण
लेते जो छू
दिल पाता खुशबू
मिल जाता सुकूँ,

भले ही पल पलक
भाँति बदली झलक |
ज्यों नजर उठाये तू,
मिल जाता सुकूँ,
मेरे नयन
तेरे चरण
लेते जो छू
दिल पाता खुशबू
मिल जाता सुकूँ,

भले ही पल पलक
भाँति बुद-बुद उदक
ज्यों अमृत झिराये तू,
मिल जाता सुकूँ,
मेरे नयन
तेरे चरण
लेते जो छू
दिल पाता खुशबू
मिल जाता सुकूँ,
।। जयमाला पूर्णार्घं ।।

“हाईकू”
क्या चाहूँ ?
तो मैं चाहू
रज चरण,
‘आप’ सा मन

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