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आचार्य श्री पूजन

गुरु-पाद पूजन – 324

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 
  • परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
    पूजन क्रंमाक 324

    =हाईकू=

    पा गये पुष्प मुस्कान,
    खड़े हम भी, द्वारे आन ।।स्थापना।।

    जल भेंटूँ,
    ओ शरद पूनो-चन्दा !
    मेंटो भौ-फन्दा ।।जलं।।

    गन्ध भेंटूँ,
    ओ शरद पूनो-चन्दा !
    भेंटो सुगन्धा ।।चन्दनं।।

    सुधाँ भेंटूँ,
    ओ शरद पूनो-चन्दा !
    मेंटो भौ-द्वन्द्वा ।।अक्षतं।।

    पुष्प भेंटूँ,
    ओ शरद पूनो-चन्दा !
    होऊँ निष्पन्दा ।।पुष्पं।।

    चरु भेंटूँ,
    ओ शरद पूनो-चन्दा !
    मेंटो क्षुध्-धंधा ।।नैवेद्यं।।

    दीप भेंटूँ,
    ओ शरद पूनो-चन्दा !
    रहूँ न अंधा ।।दीपं।।

    धूप भेंटूँ,
    ओ शरद पूनो-चन्दा !
    खो सकूँ तन्द्रा ।।धूपं।।

    फल भेंटूँ,
    ओ शरद पूना-चंदा !
    होऊँ जिनेन्द्रा ।।फलं।।

    अर्घ्य भेंटूँ,
    ओ शरद पूनो-चन्दा !
    डूबूँ आनन्दा ।।अर्घ्यं।।

    *हाईकू*

    किया बेंत को विनीत,
    कर मुझे भी दो पुनीत

    जयमाला

    सत् शिव मूक माटि सुन्दर ।
    रचना और न जग अन्दर ।।

    और न कोई माटी वो ।
    हम तुम दोई माटी वो ।।
    कसकर बांधो चलो कमर ।
    सत् शिव मूक माटि सुन्दर ।।

    डरो न अगन परीक्षा से ।
    डरो न अगण समीक्षा से ।।
    खरा….राख लो पलट अखर ।
    सत् शिव मूक माटि सुन्दर ।।

    कुछ कुछ कहे पू्र्व मां…थी ।
    महात्मा बन परमात्मा भी ।।
    सुख निरा-कुल दूर न फिर ।
    सत् शिव मूक माटि सुन्दर ।।

    ॥ जयमाला पूर्णार्घं ॥

    *हाईकू*

    क्या चाहूँ ?
    तो मैं चाहूँ,
    ऽनन्त नजारा
    अन्त संथारा

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