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आचार्य श्री पूजन

गुरु-पाद पूजन – 308

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 

परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित

पूजन क्रंमाक 308

==हाईकू==
सूनी हृदय वेदीका पधारिजो,
स्वामिन् आईजो ।।स्थापना ।।

लाये जल, ये स्वीकारो
भौ जल से पार उतारो ।।जलं।।

लाये चन्दन, ये स्वीकारो,
मेरी भी ओर निहारो ।।चन्दनं।।

लाये अक्षत, ये स्वीकारो,
तेरा ही जैसा सँभालो ।।अक्षतं।।

लाये पुष्प,ये स्वीकारो
सिर चढ़े ‘मार’ उतारो ।।पुष्पं।।

लाये नैवेद्य, ये स्वीकारो,
सिर चढ़े क्षुधा बिडारो |।नैवेद्यं।।

लाये दीप, ये स्वीकारो,
मेंटो कारो ‘ही’ अंधियारो ।।दीपं।।

लाये धूप, ये स्वीकारो,
कर्म आठों ही सभी जारो ।।धूपं।।

लाये फल, ये स्वीकारो,
सिर भारी छल-पिटारो ।।फलं।।

लाये अर्घ, ये स्वीकारो,
पकड़ ‘भौ-भौंर’ निकारो ।।अर्घ्यं।।

==हाईकू==
प्रणाम,
लिख जो, अपने-अपनों में लिया नाम

।। जयमाला।।

आपके दर्शन
मन-सुमन !
धन-श्रमण !
आपके दर्शन

बेचेनों को
कर देते धन !
इन नैनों को
समाँ सं-जीवन
आपके दर्शन
मन-सुमन !
धन-श्रमण !
आपके दर्शन

दीन दुखिंयों को
कर देते धन !
इन अँखिंयों को
समाँ नन्दन वन
आपके दर्शन
मन-सुमन !
धन-श्रमण !
आपके दर्शन

अजैनों को,
कर देते धन !
हम जैनों को
समां दीप-रतन
आपके दर्शन !
।। जयमाला पूर्णार्घं ।।

==हाईकू==
‘जि भूलें, यही विनती
हुईं भूलें अनगिनती

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