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आचार्य श्री पूजन

गुरु-पाद पूजन – 305

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 

परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित

पूजन क्रंमाक 305

=हाईकू=
सुन बलाएँ आप टारते
आये, ‘जि पुकारते ।।स्थापना।।

‘नागिन’ तारे,
दृग् जल लिये हम भी खड़े द्वारे ।।जलं।।

जश चन्दन दिश्-दिश्,
लाये हम भी चन्दन घिस ।।चन्दनं।।

सिंहासन की शूल,
मैं भी लाया धाँ शालि अमूल ।।अक्षतं।।

चीर बढ़ाया,
दिव्य पुष्प लिये मैं भी द्वारे आया ।।पुष्पं।।

मेंढक देव विमान,
लाये हम भी पकवान |।नैवेद्यं।।

किया नागों का हार,
लिये ‘दिये’ मैं भी आया द्वार |।दीपं।।

पाँव लगे कि खुले पट,
खेऊं मैं भी धूप घट |।धूपं।।

अनिल बना जल,
खड़े द्वारे हम भी लिये फल ।।फलं।।

काग’ज पन्ने,
अरघ लाया मैं भी अघ हनने ।।अर्घ्यं।।

=हाईकू=
प्रणाम,
हाथ लगने लगा, सब ही तो निर्दाम

।।जयमाला।।
ए दयालु !
रख इतनी-सी बना
बस कृपा तू
प्रीत पा लूँ
तेरी ‘कि दहलीज आ, दीप बालूँ,

प्रीत पा लूँ
तेरी ‘कि दहलीज आ, गीत गा लूँ,
ए दयालु !
रख इतनी-सी बना
बस कृपा तू
प्रीत पा लूँ
तेरी ‘कि दहलीज आ, दीप बालूँ,

प्रीत पा लूँ
तेरी ‘कि दहलीज आ, तुझे मना लूँ,
ए दयालु !
रख इतनी-सी बना
बस कृपा तू
प्रीत पा लूँ
तेरी ‘कि दहलीज आ, दीप बालूँ,

और दूसरी न आरजू
कर-कुछ ‘कि होऊँ पार यूँ
ए दयालु !
रख इतनी-सी बना
बस कृपा तू
प्रीत पा लूँ
तेरी ‘कि दहलीज आ, दीप बालूँ,
।। जयमाला पूर्णार्घं ।।

==हाईकू==
यही विनंती गुरुदेव
रखना कृपा सदैव

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