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आचार्य श्री पूजन

गुरु-पाद पूजन – 153

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 

परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक – 153

शुरु,
गुरु-बिना ।
दिन न ।। स्थापना ।।

नीर ।
वीर !
हेत-तीर ।। जलं ।।

गन्ध ।
चन्द ।।
हेत-ऽऽनन्द ।। चन्दनं ।।

अछत ।
सुमत ।।
हेत मुकत ।। अक्षतम् ।।

सुमन ।
श्रमण !
हेत सु-मन ।। पुष्पं ।।

चरु ।
पुरु ।।
हेत ‘गुरु’ ।। नैवेद्यं ।।

दिया ।
हिया ।।
हेत धिया ।। दीपं ।।

धूप ।
भूप ।।
हेत ऽनूप ।। धूपं ।।

सिफल ।
सफल ।।
हेत सुफल ।। फलं ।।

अरघ ।
अनघ ।।
हेत-सुरग ।। अर्घं ।।

==दोहा==
गुरु गुण गाते ही लगे,
सभी पलक में हाथ ।
पलक गान गुरुदेव का,
करते आत्मसात् ॥

॥ जयमाला ॥

मिरे गुरुवर – मिरे गुरुवर

कहे ये दिल की धक धक ।
तू शरद जीवे लख लख ।।
लग जाये मेरी भी, तुझको उमर,
मिरे गुरुवर-मिरे गुरुवर ।।

कहें साँसों की सरगम ।
रहे तेरे ना ‘सर’ गम ।।
हो जाये खुशियाँ मेरी,तेरी हमसफर ।
मिरे गुरुवर मिरे गुरुवर ।।

कहे नाड़ी की फड़कन ।
पा जाये पद तू अरहन् ।।
कर्म तिरे लें बरषा मुझपे कहर ।
मिरे गुरुवर मिरे गुरुवर ।।

कहे ये दिल की धक धक ।
तू शरद जीवे लख लख ।।
लग जाये मेरी भी, तुझको उमर,
मिरे गुरुवर-मिरे गुरुवर ।।

।। जयमाला पूर्णार्घं ।।

==दोहा==
यही विनय अनुनय यही,
दृग् तारक गुरु ज्ञान ।
एक बार ही दो करा,
स्वानुभूति रस पान ॥

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