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आचार्य श्री पूजन

गुरु-पाद पूजन – 145

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 

परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक – 145

हिन्दी सब कुछ पा चली,
पा जिनकी मुस्कान ।
हथकरघा की जान में,
नई आ गई जान |।
हाँ ! हाँ ! जिन सा और ना,
देखा निखिल जहान ।
विद्या सागर सन्त वे,
शाने-हिन्दुस्तान ।।स्थापना।।

पढ़ प्रतिभा थली बेटियाँ,
रखें सँभल के पाँव ।
रही आपकी ही कृपा,
गुरु विद्या मुनि राँव ।।
प्रासुक जल भर झारियाँ,
लिये खड़े गुरु द्वार ।
तुच्छ भेंट ये कर-कृपा,
कर लीजे स्वीकार ।।जलं।।

पढ़ प्रतिभा थलि बेटियाँ,
मुँह लग करें न बात ।
रही आपकी ही कृपा,
गुरु विद्या मुनि नाथ ॥
मलयज रज भर कलशियाँ,
लिये खड़े गुरु द्वार ।
तुच्छ भेंट ये कर-कृपा,
कर लीजे स्वीकार ।।चन्दनं।।

पढ़ प्रतिभा थलि बेटियाँ,
रहें नशे से दूर ।
रही आपकी ही कृपा,
गुरु विद्या कुहनुर ॥
अक्षत से भर थालियाँ,
लिये खड़े गुरु द्वार ।
तुच्छ भेंट ये कर-कृपा,
कर लीजे स्वीकार ।।अक्षतम् ।।

पढ़ प्रतिभा थलि बेटियाँ,
चेटिंग-डेटिंग दूर ।
रही आपकी ही कृपा,
गुरु विद्या सुखपूर ॥
पुष्प सुगंधित थालियाँ,
लिये खड़े गुरु द्वार ।
तुच्छ भेंट ये कर-कृपा,
कर लीजे स्वीकार ।।पुष्पं।।

पढ़ प्रतिभा थलि बेटियाँ,
वृक्ष न तोड़ें पात ।
रही आपकी ही कृपा,
गुरु विद्या प्रभु भाँत ॥
घृत व्यंजन भर थालियाँ,
लिये खड़े गुरु द्वार ।
तुच्छ भेंट ये कर-कृपा ,
कर लीजे स्वीकार ।। नैवेद्यं ।।

पढ़ प्रतिभा थलि बेटियाँ,
रहें ना कच्चे कान ।
रही आपकी ही कृपा,
गुरु विद्या भगवान् ॥
घृत दीपों की मालिका,
लिये खड़े गुरु द्वार ।
तुच्छ भेंट ये कर-कृपा,
कर लीजे स्वीकार ।।दीपं ।।

पढ़ प्रतिभा थलि बेटियाँ,
रखें ऐड़िया साफ ।
रही आपकी ही कृपा,
गुरु विद्या निष्पाप ॥
धूप सुगंधित थालियाँ,
लिये खड़े गुरु द्वार ।
तुच्छ भेंट ये -कर कृपा,
कर लीजे स्वीकार ।। धूपं ।।

पढ़ प्रतिभा थलि बेटियाँ,
करें ‘हेट’ सिगरेट ।
रही आपकी ही कृपा,
गुरु विद्या उर श्वेत ॥
भर मनहर फल थालियाँ,
लिये खड़े गुरु द्वार ।
तुच्छ भेंट ये कर-कृपा,
कर लीजे स्वीकार ।। फलं ।।

पढ़ प्रतिभा थलि बेटियाँ,
करें न टाइम पास ।
रही आपकी ही कृपा,
गुरु विद्या भवि खास ॥
सजी अरघ की थालियाँ,
लिये खड़े गुरु द्वार ।
तुच्छ भेंट ये कर-कृपा,
कर लीजे स्वीकार ।। अर्घं ।।

==दोहा==
प्रतिभा स्थली नाम की,
जिनकी बिटियाँ एक ।
छोटे बाबा वे तिन्हें,
मेरे नमन अनेक ॥

॥ जयमाला ॥

अमिट जैन शासन पहचान ।
गुरु विद्या भारत की शान ।।

दिये सूत्र नहिं एक, अनेक ।
नीर किसी दृग् सके न देख ।।
करघा रोजगार वरदान ।
गुरु विद्या भारत की शान ।।
अमिट जैन शासन पहचान,
गुरु विद्या भारत की शान ।

दान ज्ञान अक्षर पद हेत,
निमिष न किस मुस्कान समेत ।।
दिला रहे हिंदी सम्मान ।
गुरु विद्या भारत की शान ।।
अमिट जैन शासन पहचान,
गुरु विद्या भारत की शान ।

संध्यावान ले प्रभु का नाम ।
कहें, दो करा स्वामिन् काम।।
नाम इण्डिया करे प्रयाण ।
गुरु विद्या भारत की शान ।।
अमिट जैन शासन पहचान ।
गुरु विद्या भारत की शान ।।

करें प्रार्थना कर दो जोड़ ।
हरियाली भर दो चहुओर ।।
गौ शाला पशु जीवन दान ।
गुरु विद्या भारत की शान ।।
अमिट जैन शासन पहचान ।
गुरु विद्या भारत की शान ।।

भले हवा पश्चिम बल जोर,
रखी थाम ऋषि संस्कृति डोर ।।
प्रद प्रतिभा संस्थली संज्ञान ।
गुरु विद्या भारत की शान ।।
अमिट जैन शासन पहचान ।
गुरु विद्या भारत की शान ।।

गागर में सागर सी मित्र ।
नीतिन् न्याय समेत विचित्र ।।
निकष मूकमाटी श्रुत ज्ञान ।
गुरु विद्या भारत की शान ।।
अमिट जैन शासन पहचान ।
गुरु विद्या भारत की शान ।।

हो तो एक गिना दें काम ।
इतने, हो जायेगी शाम ।।
कैसे बने नेक गुणगान ।
गुरु विद्या भारत की शान ।।
अमिट जैन शासन पहचान ।
गुरु विद्या भारत की शान ।।
।। जयमाला पूर्णार्घं ।।

==दोहा==
यही विनय अनुनय यहीं,
निर्ग्रंथन निर्ग्रंथ ।
स्वयं समां कर लीजिये,
मानस सज्जन संत ।।

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