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आचार्य श्री पूजन

गुरु-पाद पूजन – 1008

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 
  • परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित

पूजन क्रंमाक 1008

आ भक्ति धारा में बहते
जय विद्या, जय विद्या कहते
जय विद्या मन्त्र आश-पूरण
जय विद्या, जय विद्या जप मन ।।स्थापना।।

ले हाथो में घट जल कंचन
जय विद्या, जय विद्या जप मन
आ भक्ति धारा में बहते
जय विद्या, जय विद्या कहते
जय विद्या मन्त्र आश-पूरण
जय विद्या, जय विद्या जप मन ।।जलं।।

ले हाथो में सुरभित चन्दन
जय विद्या, जय विद्या जप मन
आ भक्ति धारा में बहते
जय विद्या, जय विद्या कहते
जय विद्या मन्त्र आश-पूरण
जय विद्या, जय विद्या जप मन ।।चन्दनं।।

ले हाथो में धाँ अक्षत कण
जय विद्या, जय विद्या जप मन
आ भक्ति धारा में बहते
जय विद्या, जय विद्या कहते
जय विद्या मन्त्र आश-पूरण
जय विद्या, जय विद्या जप मन ।।अक्षतं।।

ले हाथो में गुल मानस वन
जय विद्या, जय विद्या जप मन
आ भक्ति धारा में बहते
जय विद्या, जय विद्या कहते
जय विद्या मन्त्र आश-पूरण
जय विद्या, जय विद्या जप मन ।।पुष्पं।।

ले हाथो में षट्-रस व्यंजन
जय विद्या, जय विद्या जप मन
आ भक्ति धारा में बहते
जय विद्या, जय विद्या कहते
जय विद्या मन्त्र आश-पूरण
जय विद्या, जय विद्या जप मन ।।नैवेद्यं।।

ले हाथो में दीपक घृत अन
जय विद्या, जय विद्या जप मन
आ भक्ति धारा में बहते
जय विद्या, जय विद्या कहते
जय विद्या मन्त्र आश-पूरण
जय विद्या, जय विद्या जप मन ।।दीपं।।

ले हाथो में सुर’भी नन्दन
जय विद्या, जय विद्या जप मन
आ भक्ति धारा में बहते
जय विद्या, जय विद्या कहते
जय विद्या मन्त्र आश-पूरण
जय विद्या, जय विद्या जप मन ।।धूपं।।

ले हाथो में फल सुर उपवन
जय विद्या, जय विद्या जप मन
आ भक्ति धारा में बहते
जय विद्या, जय विद्या कहते
जय विद्या मन्त्र आश-पूरण
जय विद्या, जय विद्या जप मन ।।फलं।।

ले हाथो में वस द्रव सुरगन
जय विद्या, जय विद्या जप मन
आ भक्ति धारा में बहते
जय विद्या, जय विद्या कहते
जय विद्या मन्त्र आश-पूरण
जय विद्या, जय विद्या जप मन ।।अर्घ्यं।

==कीर्तन==
मन्त्र वशीकरण
जयतु जय विद्या श्रमण
जयतु जय विद्या श्रमण
जयतु जय विद्या श्रमण
मन्त्र आश पूरण
मन्त्र वशीकरण
जयतु जय विद्या श्रमण

।। जयमाला ।।

बाग अहिंसा सौरभ जय
ग्राम सदलगा गौरव जय

जयतु शरद्-पूनम अवतार
उत्सव पिता मलप्पा द्वार

धन धन गोद मात श्री मन्त
शिशु विद्याधर करुणा-वन्त

कलि जल जामन मरण जहाज
सूरि देश भूषण महाराज

प्रतिमा सप्तम ब्रहचर नाम
ज्ञान ललक गुरु ज्ञान मुकाम

दीक्षा दैगम्बर अजमेर
ज्ञान आदरश चरित सुमेर

गुरु कर कमलन सूरि उपाध
सहज ज्ञान गुरु-देव समाध

देख मनस मानस मासूम
रखा कदम बुन्देली भूम

बाबा कुण्डलपुर पुरुदेव
जाप जुड़ी विद्या गुरुदेव

कुछ न कुछ तो होगा मित्र
कहूँ कहाँ तक अगम चरित्र

बाग अहिंसा सौरभ जय
ग्राम सदलगा गौरव जय
।। जयमाला पूर्णार्घं ।।

==हाईकू==
सहज-निरा’कुल लो बना
बस मुझे अपना

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